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⧬ ग्रहों का फल देने का समय :-
ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा में तो अपना फल देते ही हैं बल्कि कुछ और भी जीवन में ऐसे मौके आते हैं जब ग्रह अपना पूरा प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर डालते हैं।
जितना कुछ मेरे मस्तिष्क में है वह सब तो मैं व्यक्त नहीं कर सकता परन्तु आवश्यक नियम इस प्रकार हैं जब आप बीमार होते हैं उस समय सूर्य का प्रभाव आपपर होता है।
सूर्य यदि अच्छा हो तो बीमारी की अवस्था में भी आपका मनोबल बना रहता है इसके विपरीत यदि सूर्य अच्छा न हो तो जरा सा स्वास्थ्य खराब होने के बाद आपको जीवन से निराशा होने लगती है इस समय सूर्य का पूर्ण प्रभाव आप पर होता है।
घर में किसी बच्चे के जन्म के समय हम चंद्रमा के प्रभाव में होते हैं जीवन में संवेदनशील लम्हों में चन्द्र का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है।
इसके अतिरिक्त जब हम अपने हुनर या कला का प्रदर्शन करते हैं तब चन्द्र हमारे साथ होते हैं।
चोट लगने पर, सर्जरी या आपरेशन के समय, संघर्ष करते समय और मेहनत करते वक्त मंगल हमारे साथ होता है उस वक्त किसी अन्य ग्रह की अपेक्षा मंगल का असर सर्वाधिक आप पर रहता है।
हाथ की मंगल रेखा या मंगल के फल देने का काल यही होता है।
जब बोलकर किसी को प्रभावित करने का समय आता है तब बुध का समय होता है।
जब आप चालाकी से अपना काम निकालते हैं तो बुध का बलाबल आपकी सहायता करता है।
जब हम शिक्षा ग्रहण करते है या फिर जब हम शिक्षा देते हैं उस समय गुरु का प्रभाव हमारे जीवन पर होता है।
किसी को आशीर्वाद देते समय या किसी को बददुआ देने के समय बृहस्पति ग्रह की कृपा हम पर होती है इसके अतिरिक्त पुत्र के जन्म के समय या पुत्र के वियोग के समय भी बृहस्पति का पूरा प्रभाव हमारे जीवन पर होता है।
मनोरंजन के समय शुक्र का प्रभाव होता है विवाह, वर्षगांठ, मांगलिक उत्सव और सम्भोग के समय शुक्र के फल को हम भोग रहे होते हैं ।
आनन्द का समय हो या नृत्य का, हर समय शुक्र हमारे साथ होते हैं यही एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसके निर्बल होने पर जीवन एक बोझ के समान लगता है।
जीवन से आनन्द ख़त्म हो जाए या जीना मात्र एक मजबूरी बन कर रह जाए तो समझ ले कि शुक्र का बुरा प्रभाव आप पर है।
शनि का अर्थ ही दुःख है जिस समय हम दुःख की अवस्था में होते हैं तब शनि का समय समझे इस काल को छोड़कर सभी काल क्षण भंगुर होते हैं।
शनि के काल की अवधि लम्बी होती है दुःख या शोक के समय, सेवा करते वक्त, कारावास में या जेल में और बुढापे में शनि का प्रभाव सर्वाधिक होता है।
कैसे पढें कुंडली के रहस्य
ज्योतिष से जीवन के रहस्य खोलने के लिए जन्म समय के अनुसार कुण्डली बनाजरूर होता है, अक्सर कुंडली बनाने के बाद उसके अन्दर भावो के अनुसार ग्रहों का विवेचन कैसे किया जाता है इस बात पर लोग अपने अपने ज्ञान के अनुसार कथन करते है, कई बार तो मैंने देखा है की कुंडली देखते ही कहना शुरू कर देते है की यह बात है इस बात का होना यह बात हुयी है लेकिन जो कुंडली को पूंछने के लिए आया है वह अपनी बात को कह ही नहीं पाया और तब तक दूसरे का नंबर आ गया, अपनी कुंडली को अपने आप जब तक पढ़ना नहीं आयेगा तब तक जीवन के भेद आप अपने लिए नहीं खोल पायेंगे, हर व्यक्ति के लिए तीन बाते जरूरी है की वह *∆अपने समय को पहिचानना सीखे उसके बाद ∆अपनी बात को दूसरे को समझना सीखे और तीसरी बात है की जब दुःख या कष्ट का समय है बीमारी है तो उसका अपने आप ही इलाज करना सीखे। समय को सीखना ज्योतिष कहलाता है* और अपनी *बात को समझाने की कला को मास्टर* के रूप में जाना जाता है तीसरी बात *जीवन के अन्दर आने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए वैद्य का ग्यान होना भी जरूरी है,* बाकी के काम जो जीवन में अपने लिए जरूरी है वे केवल कमाने खाने के लिए और लोगो के साथ रहने तथा आगे की संतति को चलाने से ही जुड़े होते है।
*ज्योतिष के अनुसार जब भेद खोले जा सकते है तो क्यों न भेद को खोल कर... अपने हित के लिए देखा जाए⁉..और जो दिक्कत आने वाली है, उसका निराकारण खुद के द्वारा ही कर लिया जाए ⁉ ..तो कितना अच्छा होगा।आज कल कुंडली बनाने के लिए ख़ास मेहनत नहीं करनी पड़ती ।* कुंडली को बनाने के लिए बहुत से सोफ्ट वेयर आ गए उनके द्वारा अपनी जन्म तारीख और समय तथा स्थान के नाम से आप अपनी कुंडली को आसानी से बना सकते है।
उपरोक्त कुंडली में नंबर लिखे हुए और भावो के नाम लिखे है तथा ग्रहों के नाम लिखे हुए है।नंबर राशि से सम्बंधित है जैसे लगन जिस समय जातक का जन्म हुआ था उस समय तीन नंबर की राशि आसमान में स्थान ग्रहण किये हुए थी, एक नंबर पर मेष दूसरे नंबर की वृष तीसरे नंबर की मिथुन चौथे पर कर्क पांचवे पर सिंह छठे नंबर की कन्या सातवे नंबर की तुला आठवे की वृश्चिक नवे की धनु दसवे की मकर ग्यारहवे की कुम्भ और बारहवे नंबर की राशि मीन होती है।इसी प्रकार कसे लगन जो पहले नंबर का भाव होता है उसके अन्दर जो राशि स्थापित होती है वह लगन की राशि कहलाती है जैसे उपरोक्त कुंडली में तीन नंबर की मिथुन राशि स्थापित है।इससे बाएं तरफ देखते है चार नंबर लिखा है, इसी क्रम से भावो का रूप बना हुया होता है।
पहले भाव को शरीर से, दुसरे को धन से, तीसरे को हिम्मत और छोटे भाई बहिनों से, चौथे नंबर को माता मन मकान और सुख से, पांचवे को संतान शिक्षा और परिवार से, छठे भाव को दुश्मनी कर्जा बीमारी से, सातवे नंबर के भाव को जीवन साथी पति या पत्नी के लिए, आठवे भाव को अपमान.. मृत्यु ..जान जोखिम, नवे को भाग्य और धर्म न्याय विदेश, दसवे को कर्म और धन के लिए किये जाने वाले प्रयास, ग्यारहवे को लाभ और बड़े भाई बहिन, दोस्त के लिए ..बारहवे को खर्च और आराम करने वाले स्थान के नाम से जाना जाता है।
ग्रह तीन प्रकार के होते है एक अच्छे दुसरे खराब और तीसरे अच्छे के साथ अच्छे और खराब के साथ खराब। *खराब ग्रहों में सूर्य मंगल शनि राहू केतु* को माना जाता है *अच्छे ग्रहों में चन्द्र बुध शुक्र और गुरु को माना जाता है* लेकिन *बुध और चन्द्रमा के बारे में माना जाता है की बुध जिस ग्रह के साथ होता है और अधिक नजदीक होने पर वह उसी ग्रह के अनुसार अपने काम करने लगता है । तथा चन्द्रमा के बारे में कहा जाता है की *वह शु्क्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक बहुत अच्छा* होता है तथा *कृष्ण पक्ष की अष्टमी से अमावस्या तक बहुत खराब होता है ।* बीच के समय में सामान्य अच्छा या बुरा फल देने वाला होता है।
*कुंडली को पढ़ने के लिए सबसे पहले तीन बाते ध्यान में रखनी पड़ती है ..पहली तो ग्रह का स्थान, ..दूसरा ग्रह के द्वारा कहाँ से प्रभाव लिया जा रहा है । ..तीसरा ग्रह किस ग्रह के साथ बैठ कर क्या फल ग्रहण कर रहा है। इसके अलावा जो पांच बाते इसी के अन्दर आती है उनके अन्दर कुंडली में धन कहा है, कुंडली में खराब स्थान कहाँ है कुंडली में राज योग कहा है, कुंडली में ग्रह एक दूसरे को कहाँ एक दूसरे के बल को ग्रहण कर रहे है, और आखिर में देखा जाता है की कुंडली के अन्दर विशेषता क्या है..?*
*कुंडली को पढ़ने के लिए सबसे पहले तीन बाते ध्यान में रखनी पड़ती है ..पहली तो ग्रह का स्थान, ..दूसरा ग्रह के द्वारा कहाँ से प्रभाव लिया जा रहा है । ..तीसरा ग्रह किस ग्रह के साथ बैठ कर क्या फल ग्रहण कर रहा है। इसके अलावा जो पांच बाते इसी के अन्दर आती है उनके अन्दर कुंडली में धन कहा है, कुंडली में खराब स्थान कहाँ है कुंडली में राज योग कहा है, कुंडली में ग्रह एक दूसरे को कहाँ एक दूसरे के बल को ग्रहण कर रहे है, और आखिर में देखा जाता है की कुंडली के अन्दर विशेषता क्या है..?*
उदाहरण के लिए उपरोक्त कुंडली को देखे, मिथुन लगन की कुंडली है इस लगन का मालिक बुध है, इसी प्रकार से हर राशि का अपना अपना मालिक होता है, जैसे लगन में मिथुन है तो उसका मालिक बुध है धन भाव में कर्क है तो इसका मालिक चन्द्रमा है तीसरे भाव में सिंह राशि है तो इसका मालिक सूर्य है चौथे भाव में कन्या राशि है तो इसका मालिक भी बुध है पंचम भाव में तुला राशि है तो उसका मालिक शुक्र है छठे भाव में वृश्चिक राशि है तो उसका मालिक मंगल है सप्तम में धनु राशि है इसका मालिक गुरु है अष्टम में मकर राशि है तो उसका मालिक शनि है नवे भाव में कुम्भ राशि है तो उसका मालिक भी शनि है दसवे भाव में मीन राशि तो उसका मालिक भी गुरु है लाभ भाव यानी ग्यारहवे भाव में मेष राशि है तो इसका मालिक भी मंगल है, बारहवे यानी खर्च के भाव में वृष राशि है तो उसका मालिक भी शुक्र है, इस प्रकार से सूर्य और चन्द्रमा के अलावा सभी ग्रहों की राशिया दो दो है। इन दो दो राशियों का भी एक गूढ़ता है ।
*★एक राशि तो केवल सोचने वाली होती है और दूसरे राशि करने वाली होती है, जैसे बुध की मिथुन राशि तो सोचने वाली है और कन्या राशि कार्य को करने वाली है ।*
*★उसी प्रकार से शुक्र की तुला राशि तो सोचने वाली होती है और वृष राशि करने वाली होती है ।*
*★गुरु की धनु राशि तो करने वाली होती है मीन राशि सोचने वाली होती है ।*
*★शनि की कुम्भ राशि तो सोचने वाली होती है और मकर राशि करने वाली होती है।*
*★शनि की कुम्भ राशि तो सोचने वाली होती है और मकर राशि करने वाली होती है।*
*★ वैसे चन्द्रमा के बारे में भी कहा जाता है की वह कृष्ण पक्ष में नकारात्मक सोच देता है तो शुक्ल पक्ष में सकारात्मक सोच देता है।*
*★सूर्य के बारे में भी कहा जाता है की वह दक्षिणायन यानी देवशयनी एकादशी से देवोत्थानी एकादसी तक नकारात्मक प्रभाव देने वाला होता है और अलावा में सकारात्मक प्रभाव देने वाला होता है।*
इस कुंडली में बुध जो लगन का मालिक है वह जातक के बारे में बताता है की जातक धर्म न्याय और क़ानून के घर में है, यानी जातक का जन्म जहां हुआ है वह धर्म न्याय और क़ानून के लिए जाना जाता होगा। इसके अलावा ग्यारहवे भाव में चन्द्रमा है, चन्द्रमा मेष राशि का है मेष राशि पुरुष ग्रह मंगल की राशि है, चन्द्रमा को राहू मंगल का बल लेकर सप्तम भाव से देख रहा है, राहू जिस भाव में जिस ग्रह के साथ होता है उसी का बल प्रदान करता है, राहू ने मंगल का बल लेकर चन्द्रमा को दिया है यानी जातक के कई बहिने है भाई है, राहू अपनी पहिचान नहीं देता है, केवल ग्रहों की पहिचान देता है, मंगल चन्द्र बुध केतु राहू के साथ है यानी राहू ने अपनी पांच दृष्टियों से चार को काम में लिया है।पहली दृष्टि जहां वह विराजमान है, दूसरी वह तीसरी दृष्टि से बुध को देख रहा है पंचम दृष्टि से वह चन्द्रमा को देख रहा है और सप्तम दृष्टि से वह केतु को देख रहा है।जातक के धन भाव को अष्टम स्थान से सूर्य गुरु और शुक्र देख रहे है, सप्तम से मंगल भी देख रहा है।जातक के छोटे भाई बहिनों के घर को बुध देख रहा है जातक के माता मन मकान को अष्टम में विराजमान गुरु देख रहा है, जातक के संतान शिक्षा और परिवार भाव को चन्द्रमा और केतु दोनों देख रहे है। जातक के कर्जा दुश्मनी बीमारी के भाव को बारहवा शनि देख रहा है, जातक के जीवन साथी के भाव में मंगल और राहू विराजमान है तथा केतु भी देख रहा है, जातक के अपमान मृत्यु और जान जोखिम के भाव के अन्दर सूर्य गुरु और शुक्र विराजमान है जातक के नवे भाव में बुध विराजमान है और केतु लगन से तथा बारहवे भाव से शनि की वक्र दृष्टि भी इस भाव पर आ रही है, जातक के कार्य भाव को केवल मंगल देख रहा है, तथा अष्टम का गुरु भी देख रहा है, जातक के लाभ भाव में चन्द्रमा है और चन्द्रमा को राहू मंगल की शक्ति को लेकर देख रहा है, जातक के खर्चे के भाव में शनि विराजमान है साथ ही गुरु अष्टम भाव से इस भाव को देख रहा है। इस प्रकार से ग्रहों की स्थिति और ग्रहों की निगाह को देखा जाता है, मंगल अपने स्थान और अपने स्थान से चौथे भाव में सप्तम भाव में तथा अष्टम भाव में देखता है, *गुरु राहू केतु अपने स्थान अपने से तीसरे स्थान पंचम स्थान सप्तम स्थान और नवे स्थान को देखते है,*शनि अपने स्थान और अपने स्थान से तीसरे स्थान सप्तम स्थान और दसवे स्थान को देखता है। *सूर्य चन्द्र बुध शुक्र केवल अपने से सातवे स्थान को ही देखते है।* जो ग्रह द्रश्य स्थान को देखता है उस स्थान पर अपना असर छोड़ता है और उस स्थान का प्रभाव उस ग्रह के अन्दर भी शामिल होता है। *छठे भाव के ग्रह कर्जा दुश्मनी बीमारी पालने वाले होते है और ब्याज आदि से खाने वाले* होते है, *अष्टम के ग्रह गुप्त रूप से परेशान करने वाले होते है* और जो भी भाग्य से धर्म से कमाया जाए उसे किसी न किसी रूप से खा जाते है। *बारहवे भाव के ग्रह किसी न किसी कारण से खर्च करवाने वाले होते है।लेकिन छः आठ बारह में खराब ग्रह लाभ देने वाले होते है* और अच्छे ग्रह परेशान करने वाले होते है। *अगर अच्छे ग्रह छः आठ भारह में वक्री हो जाए तो अच्छा फल देने वाले होते है और खराब ग्रह अगर छः आठ बारह में वक्री हो जाए तो और भी खराब हो जाते है।* जो ग्रह स्थान परिवर्तन कर लेते है, यानी अपनी राशि को छोड़ कर एक दूसरे की राशि में बैठ जाते है वे भी समय पर अपने फ़लो को बदलाने के लिए माने जाते है।
: क्या संकेत देता है तुलसी का मुरझाया पौधा?
1. प्रकृति की खासियत
प्रकृति की अपनी एक अलग खासियत है। इसने अपनी हर एक रचना को बड़ी ही खूबी और विशिष्ट नेमत बख्शी है। इंसान तो वैसे भी प्रकृति की उम्दा रचनाओं में से एक है जो समझदारी और सूझबूझ से काम लेता है। इसके अलावा जानवरों की खूबी ये है कि वे आने वाले खतरे, मसलन भूकंप, सुनामी, पारलौकिक ताकतों आदि को पहले ही भांप सकने में सक्षम होते हैं। लेकिन बहुत ही कम लोग यह बात जानते हैं कि पौधों के भीतर भी ऐसी ही अलग विशेषता है, जिसे अगर समझ लिया जाए तो घर के सदस्यों पर आने वाले कष्टों को पहले ही टाला जा सकता है।
2. क्यों मुरझाता है तुलसी का पौधा
शायद कभी किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि चाहे तुलसी के पौधे पर कितना ही पानी क्यों ना डाला जाए, उसकी कितनी ही देखभाल क्यों ना की जाए, वह अचानक मुरझाने या सूखने क्यों लगता है?
3. क्या बताना चाहता है
आपको यकीन नहीं होगा लेकिन तुलसी का मुरझाया हुआ पौधा आपको यह बताने की कोशिश कर रहा होता है कि जल्द ही परिवार पर किसी विपत्ति का साया मंडरा सकता है। कहने का अर्थ यह है कि अगर परिवार के किसी भी सदस्य पर कोई मुश्किल आने वाली है तो उसकी सबसे पहली नजर घर में मौजूद तुलसी के पौधे पर पड़ती है।
4. हिन्दू शास्त्र
शास्त्रों में यह बात भली प्रकार से उल्लिखित है कि अगर घर पर कोई संकट आने वाला है तो सबसे पहले उस घर से लक्ष्मी यानि तुलसी चली जाती है और वहां दरिद्रता का वास होने लगता है।
5. बुध ग्रह
जहां दरिद्रता, अशांति और कलह का वातावरण होता है वहां कभी भी लक्ष्मी का वास नहीं होता। ज्योतिष के अनुसार ऐसा बुध ग्रह की वजह से होता है क्योंकि बुध का रंग हरा होता है और वह पेड़-पौधों का भी कारक माना जाता है।
6. लाल किताब
ज्योतिष शास्त्र से संबंधित लाल किताब के अनुसार बुध को एक ऐसा ग्रह माना गया है जो अन्य ग्रहों के अच्छे-बुरे प्रभाव को व्यक्ति तक पहुंचाता है। अगर कोई ग्रह अशुभ फल देने वाला है तो उसका असर बुध ग्रह से संबंधित वस्तुओं पर भी होगा और अगर कोई अच्छा फल मिलने वाला है तो उसका असर भी बुध ग्रह से जुड़ी चीजों पर दिखाई देगा।
7. अच्छा और बुरा प्रभाव
अच्छे प्रभाव में पेड़-पौधे फलने-फूलने लगते हैं और बुरे प्रभाव में मुरझाकर अपनी दुर्दशा बयां कर देते हैं।
8. विभिन्न प्रकार की तुलसी
शास्त्रानुसार तुलसी के विभिन्न प्रकार के पौधों का जिक्र मिलता है, जिनमें श्रीकृष्ण तुलसी, लक्ष्मी तुलसी, राम तुलसी, भू तुलसी, नील तुलसी, श्वेत तुलसी, रक्त तुलसी, वन तुलसी, ज्ञान तुलसी मुख्य रूप से उल्लिखित हैं। इन सभी के गुण अलग-अलग और विशिष्ट हैं। तुलसी मानव शरीर में कान, वायु, कफ, ज्वर, खांसी और दिल की बीमारियों के लिए खासी उपयोगी है।
9. वास्तुशास्त्र में तुलसी
वास्तुशास्त्र में भी तुलसी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वास्तु के अनुसार तुलसी को किसी भी प्रकार के दोष से मुक्त रखने के लिए उसे दक्षिण-पूर्व से लेकर उत्तर-पश्चिम, किसी भी स्थान तक लगा सकते हैं। अगर तुलसी के गमले को रसोई के पास रखा जाए तो किसी भी प्रकार की कलह से मुक्ति पाई जा सकती है। जिद्दी पुत्र का हठ दूर करने के लिए पूर्व दिशा में लगी खिड़की के सामने रखें।
10. संतान में सुधार
नियंत्रण या मर्यादा से बाहर निकल चुकी संतान को पूर्व दिशा से रखी गई तुलसी के तीन पत्तों को किसी ना किसी रूप में खिलाने पर वह आपकी आज्ञा का पालन करने लगती है।
11. कारोबार में वृद्धि
कारोबार की चिंता सताने लगी है, घर में आय के साधन कम होते जा रहे हैं तो दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखी तुलसी पर हर शुक्रवार कच्चा दूध और मिठाई का भोग लगाने के बाद उसे किसी सुहागिन स्त्री को दे दें। इससे व्यवसाय में सफलता मिलती है।
12. नौकरी पेशा
अगर आप नौकरी पेशा हैं और ऑफिस में आपका कोई सीनियर परेशान कर रहा है तो ऑफिस की खाली जमीन पर या किसी गमले में, सोमवार के दिन तुलसी के सोलह बीज किसी सफेद कपड़े में बांध कर ऑफिस जाते ही दबा दीजिए। इससे ऑफिस में आपका सम्मान बढ़ेगा।
13. शालिग्राम का अभिषेक
घर की महिलाएं रोजाना पंचामृत बनाकर शालिग्राम का अभिषेक करती हैं तो घर में कभी भी वास्तुदोष की हालत नहीं आएगी।
14. शारीरिक फायदे
ज्योतिष के अलावा शारीरिक तौर पर भी तुलसी के बड़े फायदे देखे गए हैं। सुबह के समय खाली पेट ग्रहण करने से डायबिटीज, रक्त की परेशानी, वात, पित्त आदि जैसे रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। प्रतिदिन अगर तुलसी के सामने कुछ समय के लिए बैठा जाए तो अस्थमा आदि जैसे श्वास के रोगों से जल्दी छुटकारा मिलता है।
15. वैद्य का दर्जा
शास्त्रों में तुलसी को एक वैद्य का दर्जा भी दिया गया है, जिसका घर में रहना अत्यंत लाभकारी है। मनुष्य को अपने जीवन के प्रत्येक चरण में तुलसी की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही आधुनिक रसायन शास्त्र भी यह बात स्वीकारता है कि तुलसी का सेवन, इसका स्पर्श, दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होता है।
*तुलसी* 
🏻 *अमूमन हर घर में पाए जाने वाला तुलसी का पौधा अपने चमत्कारिक गुणों की वजह से आयुर्वेद की दुनिया में एक बड़ा नाम है। यह एकमात्र ऐसी औषधि है जिससे कई गंभीर समस्याओं को ठीक किया जा सकता है। वहीं हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इसे पवित्र और पूजनीय माना गया है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं तुलसी से जुड़ा कुछ ऐसा ही आसान उपाय, जिसे अपनाने से मिलता है सुख, समृद्धि और सौभाग्य…*
*रोजाना तुलसी का पूजन करना और पौधे में जल अर्पित करना हमारी प्राचीन परंपरा है ।जिस घर में रोज तुलसी की पूजा होती है,वहां सुख-समृद्धि, सौभाग्य बना रहता है और धन की कभी कोई कमी सहसूस नहीं होती ।*
*तुलसी के पत्ते पीसकर पानी में डालकर नहाने से शरीर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है ।साथ ही, कुंडली से जुड़े अशुभ प्रभाव भी दूर होते हैं ।*
*घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगाने व रोजाना शाम को इसके पास घी का दीपक जलाने से घर में कलह और अशांति नहीं रहती है ।साथ ही, माँ लक्ष्मी जी की विशेष कृपा बनी रहती है ।*
*नजर उतारना हो तो 7 तुलसी के पत्ते व 7 काली मिर्च को मुट्ठी में लें।इसके बाद पीड़ित को लेटा कर बंद मुट्ठी सिर से पैर तक भगवान का नाम लेकर 21 बार घुमाएं और फिर इस सामान को पानी में बहा दें ।*
प्रकृति की अपनी एक अलग खासियत है। इसने अपनी हर एक रचना को बड़ी ही खूबी और विशिष्ट नेमत बख्शी है। इंसान तो वैसे भी प्रकृति की उम्दा रचनाओं में से एक है जो समझदारी और सूझबूझ से काम लेता है। इसके अलावा जानवरों की खूबी ये है कि वे आने वाले खतरे, मसलन भूकंप, सुनामी, पारलौकिक ताकतों आदि को पहले ही भांप सकने में सक्षम होते हैं। लेकिन बहुत ही कम लोग यह बात जानते हैं कि पौधों के भीतर भी ऐसी ही अलग विशेषता है, जिसे अगर समझ लिया जाए तो घर के सदस्यों पर आने वाले कष्टों को पहले ही टाला जा सकता है।
2. क्यों मुरझाता है तुलसी का पौधा
शायद कभी किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि चाहे तुलसी के पौधे पर कितना ही पानी क्यों ना डाला जाए, उसकी कितनी ही देखभाल क्यों ना की जाए, वह अचानक मुरझाने या सूखने क्यों लगता है?
3. क्या बताना चाहता है
आपको यकीन नहीं होगा लेकिन तुलसी का मुरझाया हुआ पौधा आपको यह बताने की कोशिश कर रहा होता है कि जल्द ही परिवार पर किसी विपत्ति का साया मंडरा सकता है। कहने का अर्थ यह है कि अगर परिवार के किसी भी सदस्य पर कोई मुश्किल आने वाली है तो उसकी सबसे पहली नजर घर में मौजूद तुलसी के पौधे पर पड़ती है।
4. हिन्दू शास्त्र
शास्त्रों में यह बात भली प्रकार से उल्लिखित है कि अगर घर पर कोई संकट आने वाला है तो सबसे पहले उस घर से लक्ष्मी यानि तुलसी चली जाती है और वहां दरिद्रता का वास होने लगता है।
5. बुध ग्रह
जहां दरिद्रता, अशांति और कलह का वातावरण होता है वहां कभी भी लक्ष्मी का वास नहीं होता। ज्योतिष के अनुसार ऐसा बुध ग्रह की वजह से होता है क्योंकि बुध का रंग हरा होता है और वह पेड़-पौधों का भी कारक माना जाता है।
6. लाल किताब
ज्योतिष शास्त्र से संबंधित लाल किताब के अनुसार बुध को एक ऐसा ग्रह माना गया है जो अन्य ग्रहों के अच्छे-बुरे प्रभाव को व्यक्ति तक पहुंचाता है। अगर कोई ग्रह अशुभ फल देने वाला है तो उसका असर बुध ग्रह से संबंधित वस्तुओं पर भी होगा और अगर कोई अच्छा फल मिलने वाला है तो उसका असर भी बुध ग्रह से जुड़ी चीजों पर दिखाई देगा।
7. अच्छा और बुरा प्रभाव
अच्छे प्रभाव में पेड़-पौधे फलने-फूलने लगते हैं और बुरे प्रभाव में मुरझाकर अपनी दुर्दशा बयां कर देते हैं।
8. विभिन्न प्रकार की तुलसी
शास्त्रानुसार तुलसी के विभिन्न प्रकार के पौधों का जिक्र मिलता है, जिनमें श्रीकृष्ण तुलसी, लक्ष्मी तुलसी, राम तुलसी, भू तुलसी, नील तुलसी, श्वेत तुलसी, रक्त तुलसी, वन तुलसी, ज्ञान तुलसी मुख्य रूप से उल्लिखित हैं। इन सभी के गुण अलग-अलग और विशिष्ट हैं। तुलसी मानव शरीर में कान, वायु, कफ, ज्वर, खांसी और दिल की बीमारियों के लिए खासी उपयोगी है।
9. वास्तुशास्त्र में तुलसी
वास्तुशास्त्र में भी तुलसी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वास्तु के अनुसार तुलसी को किसी भी प्रकार के दोष से मुक्त रखने के लिए उसे दक्षिण-पूर्व से लेकर उत्तर-पश्चिम, किसी भी स्थान तक लगा सकते हैं। अगर तुलसी के गमले को रसोई के पास रखा जाए तो किसी भी प्रकार की कलह से मुक्ति पाई जा सकती है। जिद्दी पुत्र का हठ दूर करने के लिए पूर्व दिशा में लगी खिड़की के सामने रखें।
10. संतान में सुधार
नियंत्रण या मर्यादा से बाहर निकल चुकी संतान को पूर्व दिशा से रखी गई तुलसी के तीन पत्तों को किसी ना किसी रूप में खिलाने पर वह आपकी आज्ञा का पालन करने लगती है।
11. कारोबार में वृद्धि
कारोबार की चिंता सताने लगी है, घर में आय के साधन कम होते जा रहे हैं तो दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखी तुलसी पर हर शुक्रवार कच्चा दूध और मिठाई का भोग लगाने के बाद उसे किसी सुहागिन स्त्री को दे दें। इससे व्यवसाय में सफलता मिलती है।
12. नौकरी पेशा
अगर आप नौकरी पेशा हैं और ऑफिस में आपका कोई सीनियर परेशान कर रहा है तो ऑफिस की खाली जमीन पर या किसी गमले में, सोमवार के दिन तुलसी के सोलह बीज किसी सफेद कपड़े में बांध कर ऑफिस जाते ही दबा दीजिए। इससे ऑफिस में आपका सम्मान बढ़ेगा।
13. शालिग्राम का अभिषेक
घर की महिलाएं रोजाना पंचामृत बनाकर शालिग्राम का अभिषेक करती हैं तो घर में कभी भी वास्तुदोष की हालत नहीं आएगी।
14. शारीरिक फायदे
ज्योतिष के अलावा शारीरिक तौर पर भी तुलसी के बड़े फायदे देखे गए हैं। सुबह के समय खाली पेट ग्रहण करने से डायबिटीज, रक्त की परेशानी, वात, पित्त आदि जैसे रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। प्रतिदिन अगर तुलसी के सामने कुछ समय के लिए बैठा जाए तो अस्थमा आदि जैसे श्वास के रोगों से जल्दी छुटकारा मिलता है।
15. वैद्य का दर्जा
शास्त्रों में तुलसी को एक वैद्य का दर्जा भी दिया गया है, जिसका घर में रहना अत्यंत लाभकारी है। मनुष्य को अपने जीवन के प्रत्येक चरण में तुलसी की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही आधुनिक रसायन शास्त्र भी यह बात स्वीकारता है कि तुलसी का सेवन, इसका स्पर्श, दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होता है।
घर में कलह का एक मुख्य कारण











ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि व्यक्ति का ऐसा स्वभाव उनकी कुण्डली में मौजूद ग्रहों की कुछ खास स्थितियों के कारण होता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की कुण्डली में शनि और शुक्र एक साथ एक घर में होते हैं उनके वैवाहिक जीवन में कलह की संभावना अधिक रहती है.
इसका कारण यह है कि व्यक्ति का दूसरी स्त्रियों में रुझान रहता है. शुक्र अगर मंगल की राशि में बैठा हो तब तो परायी स्त्री से निकटता की संभावना काफी ज्यादा रहती है. जोकि घर में कलह का मुख्य कारण बनता है।
ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि व्यक्ति का ऐसा स्वभाव उनकी कुण्डली में मौजूद ग्रहों की कुछ खास स्थितियों के कारण होता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की कुण्डली में शनि और शुक्र एक साथ एक घर में होते हैं उनके वैवाहिक जीवन में कलह की संभावना अधिक रहती है.
इसका कारण यह है कि व्यक्ति का दूसरी स्त्रियों में रुझान रहता है. शुक्र अगर मंगल की राशि में बैठा हो तब तो परायी स्त्री से निकटता की संभावना काफी ज्यादा रहती है. जोकि घर में कलह का मुख्य कारण बनता है।
नोट
यह शुक्र व शनि की युति का सामान्य नियम है। कुंडली के अन्य शुभ या अशुभ योग परिणाम के प्रतिशत को घटा या बढा सकते हैं।
मेष : हनुमान जी
वृषभ : दुर्गा माँ
मिथुन : गणपति जी
कर्क: शिव जी
सिंह : विष्णु जी (श्रीराम )
कन्या : गणेश जी
तुला : देवी माँ
वृश्चिक : हनुमान जी
धनु : विष्णु जी
मकर : शिव जी
कुम्भ : शिव का रूद्र रूप
मीन : विष्णु जी (सत्यनारायण भगवान)
जन्म से मृत्यु तक कुंडली के 12 भाव******************************
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आपके इष्ट देवता कौन
अक्सर लोग आप से कहते हैं की अपने इष्ट देव की पूजा करिये। आजकल परेशानियों, कठिनाइयों के चलते हम ग्रह शांति के उपायों के रूप में कई देवी-देवताओं की आराधना, मंत्र जाप एक साथ करते जाते हैं। परिणाम यह होता है कि किसी भी देवता को प्रसन्न नहीं कर पाते- जन्मकुंडली के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के इष्ट देवी या देवता निश्चित होते हैं। यदि उन्हें जान लिया जाए तो कितने भी प्रतिकूल ग्रह हो, आसानी से उनके दुष्प्रभावों से रक्षा की जा सकती है।
इष्ट देवता का निर्धारण कुंडली में लग्न अर्थात प्रथम भाव को देखकर किया जाता है। जैसे यदि प्रथम भाव में मेष राशि हो तो (1 अंक) तो लग्न मेष माना जाएगा। नीचे सभी राशियों के आराध्य देवता दिए जा रहे हैं। अपनी राशि के अनुसार अपने देवता की आराधना कर अपने जीवन को सुखी बनायें : -
बाधक ग्रह*-:
मेष लग्न-: शनि , वृषभ लग्न-: शनि , मिथुन लग्न-: गुरु , कर्क लग्न-: शुक्र , सिंह लग्न-: मंगल
कन्या लग्न-: गुरु , तुला लग्न-: सूर्य ,वृश्चिक लग्न-: चन्द्र , धनु लग्न-: बुध
मकर लग्न-: मंगल , कुंभ लग्न-: शुक्र , मीन लग्न-: बुध .
बीज मंत्रो के बारे में जानिए :-
आज बीज मंत्रो के बारे में जानिए जो आपको कही भी लिखे हुए नहीं मिलेंगे ! क्यो कि ये किताबो से नहीं गुरु प्रदत्त होते है !
बीज मंत्र और उनके असर और कार्य :-
मंत्र शास्त्र में बीज मंत्रों का विशेष स्थान है ! मंत्रों में भी इन्हें शिरोमणि माना जाता है ! क्यो कि जिस प्रकार बीज से पौधों और वृक्षों की उत्पत्ति होती है ! उसी प्रकार बीज मंत्रों के जप से भक्तों को दैवीय ऊर्जा मिलती है !
ऐसा नहीं है ,कि हर देवी-देवता के लिए एक ही बीज मंत्र का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है ! बल्कि अलग-अलग देवी-देवता के लिए अलग बीज मंत्र हैं !
ऐं सरस्वती बीज :-
यह मां सरस्वती का बीज मंत्र है, इसे वाग् बीज भी कहते हैं ! जब बौद्धिक कार्यों में सफलता की कामना हो, तो यह मंत्र उपयोगी होता है ! जब विद्या, ज्ञान व वाक् सिद्धि की कामना हो, तो श्वेत आसान पर पूर्वाभिमुख बैठकर स्फटिक की माला से नित्य इस बीज मंत्र का एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है !
ह्रीं भुवनेश्वरी बीज :-
यह मां भुवनेश्वरी का बीज मंत्र है इसे माया बीज कहते हैं ! जब शक्ति, सुरक्षा, पराक्रम, लक्ष्मी व देवी कृपा की प्राप्ति हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठ कर रक्त चंदन या रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है !
क्लीं काम बीज :-
यह कामदेव, कृष्ण व काली इन तीनों का बीज मंत्र है ! जब सर्व कार्य सिद्धि व सौंदर्य प्राप्ति की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है !
श्रीं लक्ष्मी बीज :-
यह मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है ! जब धन, संपत्ति, सुख, समृद्धि व ऐश्वर्य की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पश्चिम मुख हो कर कमल गट्टे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है !
ह्रौं शिव बीज :-
यह भगवान शिव का बीज मंत्र है अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग नाश, चहुमुखी विकास व मोक्ष की कामना के लिए श्वेत आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है !
गं गणेश बीज :-
यह गणपति का बीज मंत्र है ! विघ्नों को दूर करने तथा धन-संपदा की प्राप्ति के लिए पीले रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है !
श्रौं नृसिंह बीज :-
यह भगवान नृसिंह का बीज मंत्र है ! शत्रु शमन, सर्व रक्षा बल, पराक्रम व आत्मविश्वास की वृद्धि के लिए लाल रंग के आसन पर दक्षिणाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या मूंगे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है !
क्रीं काली बीज :-
यह काली का बीज मंत्र है ! शत्रु शमन, पराक्रम, सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ आदि कामनाओं की पूर्ति के लिए लाल रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है !
दं विष्णु बीज :-
यह भगवान विष्णु का बीज मंत्र है ! धन, संपत्ति, सुरक्षा, दांपत्य सुख, मोक्ष व विजय की कामना हेतु पीले रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर तुलसी की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है !
*मारक ग्रह*(मारकेश)-:
जातक की जन्मकुंडली के दूसरे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव को मारक भाव कहा जाता है।
कोई भी फसाद , कोर्ट-कचहरी का मुख्य कारण स्त्री,धन,भोग और औकात से ज्यादा खर्च होता है। जन्मकुंडली का दूसरा स्थान धन का होता है, सप्तम स्थान स्त्री ( पत्नी) का है, अष्ठम स्थान पत्नीभोग का है और बारहवाँ स्थान खर्च का होता है (व्यय)।
कोई भी फसाद , कोर्ट-कचहरी का मुख्य कारण स्त्री,धन,भोग और औकात से ज्यादा खर्च होता है। जन्मकुंडली का दूसरा स्थान धन का होता है, सप्तम स्थान स्त्री ( पत्नी) का है, अष्ठम स्थान पत्नीभोग का है और बारहवाँ स्थान खर्च का होता है (व्यय)।
मेष लग्न-: धनेश और सप्तमेश शुक्र है, अष्टमेश मंगल और व्ययेश गुरु है। शुक्र दो मारक स्थान के स्वामी हो कर प्रबल मारकेश बनते है।
*शुक्र, मंगल और गुरु* मेष लग्न में मारक बनते है।।
मंगल मेष लग्न में लग्नेश और अष्टमेश बनते है, लग्नेश होने के कारण इनकी मारक शक्ति कम होती है।
*शुक्र, मंगल और गुरु* मेष लग्न में मारक बनते है।।
मंगल मेष लग्न में लग्नेश और अष्टमेश बनते है, लग्नेश होने के कारण इनकी मारक शक्ति कम होती है।
वृषभ लग्न-: *बुध, मंगल और गुरु* मारक है।
मंगल सप्तमेश और व्यय स्थान दोनों के मालीक होने के कारण प्रबल मारक है।
मंगल सप्तमेश और व्यय स्थान दोनों के मालीक होने के कारण प्रबल मारक है।
मिथुन लग्न-: *चन्द्र, गुरु,शनि और शुक्र मारक बनते है।*
मिथुन लग्न में शुक्र व्यय स्थान के स्वामी है लेकिन ज्योतिष शास्त्र में व्यय भाव में शुक्र को शुभ कहाँ गया है।
मिथुन लग्न में शुक्र व्यय स्थान के स्वामी है लेकिन ज्योतिष शास्त्र में व्यय भाव में शुक्र को शुभ कहाँ गया है।
कर्क लग्न-: *सूर्य, शनि और बुध मारक है।*
इस लग्न में शनि सप्तमेश और अष्टमेश दोनों स्थान के अधिपति हो कर प्रबल मारक है।
इस लग्न में शनि सप्तमेश और अष्टमेश दोनों स्थान के अधिपति हो कर प्रबल मारक है।
सिंह लग्न-: *बुध,शनि, गुरु और चन्द्र मारक बने है।*
गुरु इस लग्न में पंचम स्थान और अष्टम स्थान के स्वामी है इस लिये इनका मारक तत्व जन्मकुंडली में उनकी स्थिति से निर्धारित होता है।
गुरु इस लग्न में पंचम स्थान और अष्टम स्थान के स्वामी है इस लिये इनका मारक तत्व जन्मकुंडली में उनकी स्थिति से निर्धारित होता है।
कन्या लग्न-: इस लग्न में सर्वाधिक शुभ ग्रह शुक्र है ,
शुक्र धनभाव के स्वामी हो कर मारकेश भी बनते है और भाग्येश हो कर अत्यन्त शुभ है।
*शुक्र, गुरु, मंगल और सूर्य कन्या लग्न में मारक है।*
शुक्र धनभाव के स्वामी हो कर मारकेश भी बनते है और भाग्येश हो कर अत्यन्त शुभ है।
*शुक्र, गुरु, मंगल और सूर्य कन्या लग्न में मारक है।*
तुला लग्न-: *मंगल, शुक्र और बुध इस लग्न में मारक बने है।*
शुक्र इस लग्न में लग्नेश और अष्टमेश बनते है , लग्नेश सर्वथा शुभ होने से उनके मारक तत्व में कमी होती है।
मंगल इस लग्न में धनेश और सप्तम स्थान के मालिक है इस लिये प्रबल मारक है।
शुक्र इस लग्न में लग्नेश और अष्टमेश बनते है , लग्नेश सर्वथा शुभ होने से उनके मारक तत्व में कमी होती है।
मंगल इस लग्न में धनेश और सप्तम स्थान के मालिक है इस लिये प्रबल मारक है।
वृश्चिक लग्न-: *गुरु, शुक्र, बुध और शनि* इस लग्न में मारक है।
धनु लग्न-: *शनि, बुध, चन्द्र और मंगल* मारक बने है।
मकर लग्न-: *शनि, चन्द्र, सूर्य और गुरु*मकर लग्न में मारक बनते है। शनि लग्नेश और धनेश है लग्नेश सर्वथा शुभ होने से शनि के मारक तत्व में कमी आती है।
कुंभ लग्न-: *गुरु, सूर्य, बुध और शनि* कुंभ लग्न के मारक ग्रह है।
शनि लग्नेश और व्यय स्थान के स्वामी है , लग्नेश होने के कारण इनकी मारकता में कमी आती है।
शनि लग्नेश और व्यय स्थान के स्वामी है , लग्नेश होने के कारण इनकी मारकता में कमी आती है।
मीन लग्न-: *मंगल, बुध, शुक्र और शनि* इस लग्न में मारक बनते है।
जीस लग्न में जो ग्रह मारक बना है और जीस स्थान से बना है , वह ग्रह अगर उसी स्थान में हो तो उस स्थान के फल को नष्ट करता है।।
रत्न धारण का तरीका
रत्न कब, किस मात्रा में व किस रंग का पहनना चाहिए?
हमारे शरीर में ओरा होती है, यह नौ रंगों से प्रभावित होती हैं। इन्हीं नौ रंगों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। आपने वर्षा के दिनों में इंद्रधनुष आकाश मंडल में देखा होगा। वहीं रंग हमारे शरीर के इर्द-गिर्द होते हैं।
जिन रंगों की अधिकता हो जाती है, तब उस रंग के गुणों की अधिकता होने से अनावश्यक ही बाधा आती है या फिर उस रंग की कमी से कार्य क्षमता में रूकावट आने से काम नहीं बनता या अति आत्मविश्वास से हमें कई बार लाभ की जगह नुकसान होता है।
रत्न भी गहरे रंग के, कुछ हल्के रंग के आते हैं। रत्नों में भी कुछ खास बात होती है, कुछ पारदर्शी तो कुछ हल्के पारदर्शी तो कुछ अपारदर्शी भी होते हैं।
एक अच्छा ज्योतिषी इन सब बातों को जानकर व आपकी पत्रिकानुसार ग्रहों की स्थिति जानकर व वर्तमान में ग्रहों की स्थिति, उनकी डिग्री को जानकर, कौन-सा रत्न व किस रंग का किस अनुपात में पहनना है यह बात वही जानता है। तभी रत्नों का सही लाभ पाया जा सकता है
रत्नों का चुनाव कैसे करें
अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए या जिस ग्रह का प्रभाव कम पड़ रहा हो उसमें वृद्धि करने के लिए उस ग्रह के रत्न को धारण करने का परामर्श ज्योतिषी देते हैं।
अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए या जिस ग्रह का प्रभाव कम पड़ रहा हो उसमें वृद्धि करने के लिए उस ग्रह के रत्न को धारण करने का परामर्श ज्योतिषी देते हैं।
एक साथ कौन-कौन से रत्न पहनने चाहिए, इस बारे में ज्योतिषियों की राय है कि,
* माणिक्य के साथ- नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है।
* मोती के साथ- हीरा, पन्ना, नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है।
* मूंगा के साथ- पन्ना, हीरा, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है।
* पन्ना के साथ- मूंगा, मोती वर्जित है।
* पुखराज के साथ- हीरा, नीलम, गोमेद वर्जित है।
* हीरे के साथ- माणिक्य, मोती, मूंगा, पुखराज वर्जित है।
* नीलम के साथ- माणिक्य, मोती, पुखराज वर्जित है।
* गोमेद के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज वर्जित है।
* लहसुनिया के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज, मोती वर्जित है
राशि के अनुसार
मेष व वृश्चिक राशि वालों को मूँगा पहनना चाहिए। लेकिन मूँगा पहनना आपको नुकसान भी कर सकता है अत: जब तक जन्म के समय मंगल की स्थिति ठीक न हो तब तक मूँगा नहीं पहनना चाहिए। यदि मंगल शुभ हो तो यह साहस, पराक्रम, उत्साह प्रशासनिक क्षेत्र, पुलिस सेना आदि में लाभकारी होता है।
वृषभ व तुला राशि वालों को हीरा या ओपल पहनना चाहिए। यदि जन्मपत्रिका में शुभ हो तो। इन रत्नों को पहनने से प्रेम में सफलता, कला के क्षेत्र में उन्नति, सौन्दर्य प्रसाधन के कार्यों में सफलता का कारक होने से आप सफल अवश्य होंगे।
मिथुन व कन्या राशि वाले पन्ना पहनें तो सेल्समैन के कार्य में, पत्रकारिता में, प्रकाशन में, व्यापार में सफलता दिलाता है।
सिंह राशि वालों को माणिक ऊर्जावान बनाता है व राजनीति, प्रशासनिक क्षेत्र, उच्च नौकरी के क्षेत्र में सफलता का कारक होता है।
कर्क राशि वालों को मोती मन की शांति देता है। साथ ही स्टेशनरी, दूध दही-छाछ, चाँदी के व्यवसाय में लाभकारी होता है।
मकर और कुंभ नीलम रत्न धारण कर सकते हैं, लेकिन दो राशियाँ होने सावधानी से पहनें।
धनु व मीन के लिए पुखराज या सुनहला लाभदायक होता है। यह भी प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है। वहीं न्याय से जुडे व्यक्ति भी इसे पहन सकते है। आपको सलाह है कि कोई भी रत्न किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह बगैर कभी भी ना पहनें
पुखराज तर्जनी में ही क्यों
पुखराज तर्जनी में ही क्यों पहनने की सलाह देते हैं? - क्योंकि कोई भी व्यक्ति धमकी, निर्देश आदि देता है तो इसी उँगली से देता है। यही उँगली लड़ाई का भी कारण बनती है, तो होशियार करने के लिए भी काम आती है। इसलिए गुरु का रत्न पुखराज पहनने की सलाह दी जाती है। पुखराज पहनने से उस जातक में गंभीरता आती है। साथ ही वह अन्याय के प्रति सजग हो जाता है। यह धर्म-कर्म में भी आस्था जगाता है। गुरु का प्रभाव बढ़ाने और उसके अशुभ प्रभाव को खत्म करने के लिए पुखराज पहना जाता है।
अधिकांश व्यक्ति पुखराज पहनते हैं इनमें प्रमुख राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, न्यायाधीश, मंत्री, राजनायक, अभिनेता आदि की उँगली में देखा जा सकता है। पुखराज के साथ माणिक पहना जाए तो अति शुभ फल भी मिल सकते हैं। मध्यमा में नीलम धारण करते है व इसके अलावा कोई भी रत्न नहीं पहनना चाहिए अन्यथा शुभ परिणाम नहीं मिलते। इस उँगली पर ही आकर भाग्य रेखा खत्म होती है जिनकी भाग्य रेखा न हो वे किसी जानकार से सलाह लेकर नीलम पहन कर लाभ पा सकते हैं
[
ज्योतिष शास्त्रानुसारज्योतिष शास्त्रानुसार दो या दो रत्नों को धारण करते समय अति सावधानी रखना चाहिए। समान तत्व वाली राशियों के स्वामी के तथा मित्र ग्रहों के रत्नों को ही एकसाथ धारण करना चाहिए। शत्रु ग्रहों के रत्नों को धारण करना निषेध है। निम्नांकित सारिणी से भली-भाँति जानकारी मिल सकती है कि कौन-से रत्न एकसाथ धारण करना चाहिए एवं कौन-से रत्न धारण नहीं करना चाहिए।
ग्रहों के लिए निर्धारित उँगलियों में ही रत्न धारण करना चाहिए तभी प्रभावशाली होता है। माणिक अनामिका में, मूँगा तर्जनी-अनामिका में, मोती तर्जनी- अनामिका, पन्ना-कनिष्ठा में, पुखराज-तर्जनी में, हीरा तर्जनी-अनामिका में, नीलम, गोमेद व लसुनिया मध्यमा में धारण करना चाहिए। तर्जनी गुरु की, मध्यमा शनि की, अनामिका सूर्य की तथा कनिष्ठा बुध की उँगलियाँ मानी गई हैं।
रत्न धारण का प्रभाव तभी होता है, जब 'कौन-सा रत्न धारण करना' का सही निर्णय आवश्यक है। रत्न निर्दोष होना चाहिए। सही वजन का होना चाहिए। सही धातु में अँगूठी बनवाकर शुभ मुहूर्त में सही उँगली में निषेध रत्नों के साथ न पहनने से ही लाभकारी होता है
स्त्री रोग
महिलाओं की जन्मकुण्डली में चन्द्रमा जब भी पापग्रहों के साथ अर्थात शनि, राहु, केतु एवं मंगल के साथ स्थित होगा तो मानसिक अशांति के साथ मासिक धर्म की अनियमितता पैदा करता है। ऎसी स्थिति में चन्द्रमा के साथ जो ग्रह स्थित हो उसका रत्न धारण करने से स्वास्थ्य लाभ होता है। शनि-चन्द्र एक साथ हों तो काला अ$कीक दायें हाथ में धारण करने से लाभ होगा। अष्टम स्थान में मेष या वृश्चिक राशि का राहु स्थित हों और नवांश स्थिति भी उनकी अच्छी न हो तो रक्त स्त्राव अधिक होता है। गोमेद धारण करना ऎसी स्थिति में बहुत लाभकारी होगा
जन्म से मृत्यु तक कुंडली के 12 भाव
मनुष्य के लिए संसार में सबसे पहली घटना उसका इस
पृथ्वी पर जन्म है, इसीलिए प्रथम भाव जन्म भाव
कहलाता है। जन्म लेने पर जो वस्तुएं मनुष्य को प्राप्त
होती हैं उन सब वस्तुओं का विचार अथवा संबंध प्रथम
भाव से होता है जैसे-रंग-रूप, कद, जाति, जन्म स्थान
तथा जन्म समय की बातें।
ईश्वर का विधान है कि मनुष्य जन्म पाकर मोक्ष तक
पहुंचे अर्थात प्रथम भाव से द्वादश भाव तक पहुंचे।
जीवन से मरण यात्रा तक जिन वस्तुओं आदि की
आवश्यकता मनुष्य को पड़ती है वह द्वितीय भाव से
एकादश भाव तक के स्थानों से दर्शाई गई है।
मनुष्य को शरीर तो प्राप्त हो गया, किंतु शरीर को
स्वस्थ रखने के लिए, ऊर्जा के लिए दूध, रोटी आदि
खाद्य पदार्थो की आवश्यकता होती है अन्यथा
शरीर नहीं चलने वाला। इसीलिए खाद्य पदार्थ, धन,
कुटुंब आदि का संबंध द्वितीय स्थान से है।
धन अथवा अन्य आवश्यकता की वस्तुएं बिना श्रम के
प्राप्त नहीं हो सकतीं और बिना परिश्रम के धन
टिक नहीं सकता। धन, वस्तुएं आदि रखने के लिए बल
आदि की आवश्यकता होती है इसीलिए तृतीय
स्थान का संबंध, बल, परिश्रम व बाहु से होता है।
शरीर, परिश्रम, धन आदि तभी सार्थक होंगे जब काम
करने की भावना होगी, रूचि होगी अन्यथा सब
व्यर्थ है।
अत: कामनाओं, भावनाओं का स्थान चतुर्थ रखा
गया है। चतुर्थ स्थान मन का विकास स्थान है।
मनुष्य के पास शरीर, धन, परिश्रम, शक्ति, इच्छा
सभी हों, किंतु कार्य करने की तकनीकी जानकारी
का अभाव हो अर्थात् विचार शक्ति का अभाव
हो अथवा कर्म विधि का ज्ञान न हो तो
जीवनचर्या आगे चलना मुश्किल है। पंचम भाव को
विचार शक्ति के मन के अन्ततर जगह दिया जाना
विकास क्रम के अनुसार ही है।
यदि मनुष्य अड़चनों, विरोधी शक्तियों, मुश्किलों
आदि से लड़ न पाए तो जीवन निखरता नहीं है। अत:
षष्ठ भाव शत्रु, विरोध, कठिनाइयों आदि के लिए
मान्य है।
मनुष्य में यदि दूसरों से मिलकर चलने की शक्ति न हो
और वीर्य शक्ति न हो तो वह जीवन में असफल
समझा जाएगा। अत: मिलकर चलने की आदत आवश्यक
है और उसके लिए भागीदार, जीवनसाथी की
आवश्यकता होती ही है। अत: जीवनसाथी,
भागीदार आदि का विचार सप्तम भाव से किया
जाता है।
यदि मनुष्य अपने साथ आयु लेकर न आए तो उसका रंग,
रूप, स्वास्थ्य, गुण, व्यापार आदि कोशिशें सब बेकार
अर्थात् व्यर्थ हो जाएंगी। अत: अष्टम भाव को आयु
भाव माना गया है। आयु का विचार अष्टम से करना
चाहिए।
नवम स्थान को धर्म व भाग्य स्थान माना है। धर्म-
कर्म अच्छे होने पर मनुष्य के भाग्य में उन्नति होती है
और इसीलिए धर्म और भाग्य का स्थान नवम माना
गया है।
दसवें स्थान अथवा भाव को कर्म का स्थान दिया
गया है। अत: जैसा कर्म हमने अपने पूर्व में किया
होगा उसी के अनुसार हमें फल मिलेगा।
एकादश स्थान प्राप्ति स्थान है। हमने जैसे धर्म-कर्म
किए होंगे उसी के अनुसार हमें प्राप्ति होगी
अर्थात् अर्थ लाभ होगा, क्योंकि बिना अर्थ सब
व्यर्थ है आज इस अर्थ प्रधान युग में।
द्वादश भाव को मोक्ष स्थान माना गया है। अत:
संसार में आने और जन्म लेने के उद्देश्य को हमारी
जन्मकुण्डली क्रम से इसी तथ्य को व्यक्त करती है।
पृथ्वी पर जन्म है, इसीलिए प्रथम भाव जन्म भाव
कहलाता है। जन्म लेने पर जो वस्तुएं मनुष्य को प्राप्त
होती हैं उन सब वस्तुओं का विचार अथवा संबंध प्रथम
भाव से होता है जैसे-रंग-रूप, कद, जाति, जन्म स्थान
तथा जन्म समय की बातें।
ईश्वर का विधान है कि मनुष्य जन्म पाकर मोक्ष तक
पहुंचे अर्थात प्रथम भाव से द्वादश भाव तक पहुंचे।
जीवन से मरण यात्रा तक जिन वस्तुओं आदि की
आवश्यकता मनुष्य को पड़ती है वह द्वितीय भाव से
एकादश भाव तक के स्थानों से दर्शाई गई है।
मनुष्य को शरीर तो प्राप्त हो गया, किंतु शरीर को
स्वस्थ रखने के लिए, ऊर्जा के लिए दूध, रोटी आदि
खाद्य पदार्थो की आवश्यकता होती है अन्यथा
शरीर नहीं चलने वाला। इसीलिए खाद्य पदार्थ, धन,
कुटुंब आदि का संबंध द्वितीय स्थान से है।
धन अथवा अन्य आवश्यकता की वस्तुएं बिना श्रम के
प्राप्त नहीं हो सकतीं और बिना परिश्रम के धन
टिक नहीं सकता। धन, वस्तुएं आदि रखने के लिए बल
आदि की आवश्यकता होती है इसीलिए तृतीय
स्थान का संबंध, बल, परिश्रम व बाहु से होता है।
शरीर, परिश्रम, धन आदि तभी सार्थक होंगे जब काम
करने की भावना होगी, रूचि होगी अन्यथा सब
व्यर्थ है।
अत: कामनाओं, भावनाओं का स्थान चतुर्थ रखा
गया है। चतुर्थ स्थान मन का विकास स्थान है।
मनुष्य के पास शरीर, धन, परिश्रम, शक्ति, इच्छा
सभी हों, किंतु कार्य करने की तकनीकी जानकारी
का अभाव हो अर्थात् विचार शक्ति का अभाव
हो अथवा कर्म विधि का ज्ञान न हो तो
जीवनचर्या आगे चलना मुश्किल है। पंचम भाव को
विचार शक्ति के मन के अन्ततर जगह दिया जाना
विकास क्रम के अनुसार ही है।
यदि मनुष्य अड़चनों, विरोधी शक्तियों, मुश्किलों
आदि से लड़ न पाए तो जीवन निखरता नहीं है। अत:
षष्ठ भाव शत्रु, विरोध, कठिनाइयों आदि के लिए
मान्य है।
मनुष्य में यदि दूसरों से मिलकर चलने की शक्ति न हो
और वीर्य शक्ति न हो तो वह जीवन में असफल
समझा जाएगा। अत: मिलकर चलने की आदत आवश्यक
है और उसके लिए भागीदार, जीवनसाथी की
आवश्यकता होती ही है। अत: जीवनसाथी,
भागीदार आदि का विचार सप्तम भाव से किया
जाता है।
यदि मनुष्य अपने साथ आयु लेकर न आए तो उसका रंग,
रूप, स्वास्थ्य, गुण, व्यापार आदि कोशिशें सब बेकार
अर्थात् व्यर्थ हो जाएंगी। अत: अष्टम भाव को आयु
भाव माना गया है। आयु का विचार अष्टम से करना
चाहिए।
नवम स्थान को धर्म व भाग्य स्थान माना है। धर्म-
कर्म अच्छे होने पर मनुष्य के भाग्य में उन्नति होती है
और इसीलिए धर्म और भाग्य का स्थान नवम माना
गया है।
दसवें स्थान अथवा भाव को कर्म का स्थान दिया
गया है। अत: जैसा कर्म हमने अपने पूर्व में किया
होगा उसी के अनुसार हमें फल मिलेगा।
एकादश स्थान प्राप्ति स्थान है। हमने जैसे धर्म-कर्म
किए होंगे उसी के अनुसार हमें प्राप्ति होगी
अर्थात् अर्थ लाभ होगा, क्योंकि बिना अर्थ सब
व्यर्थ है आज इस अर्थ प्रधान युग में।
द्वादश भाव को मोक्ष स्थान माना गया है। अत:
संसार में आने और जन्म लेने के उद्देश्य को हमारी
जन्मकुण्डली क्रम से इसी तथ्य को व्यक्त करती है।
जन्म से मृत्यु तक कुंडली के 12 भाव***********************************************
मनुष्य के लिए संसार में सबसे पहली घटना उसका इस पृथ्वी पर जन्म है, इसीलिए प्रथम भाव जन्म भाव कहलाता है। जन्म लेने पर जो वस्तुएं मनुष्य को प्राप्त होती हैं उन सब वस्तुओं का विचार अथवा संबंध प्रथम भाव से होता है जैसे-रंग-रूप, कद, जाति, जन्म स्थान तथा जन्म समय की बातें।
ईश्वर का विधान है कि मनुष्य जन्म पाकर मोक्ष तक पहुंचे अर्थात प्रथम भाव से द्वादश भाव तक पहुंचे। जीवन से मरण यात्रा तक जिन वस्तुओं आदि की आवश्यकता मनुष्य को पड़ती है वह द्वितीय भाव से एकादश भाव तक के स्थानों से दर्शाई गई है।
मनुष्य को शरीर तो प्राप्त हो गया, किंतु शरीर को स्वस्थ रखने के लिए, ऊर्जा के लिए दूध, रोटी आदि खाद्य पदार्थो की आवश्यकता होती है अन्यथा शरीर नहीं चलने वाला। इसीलिए खाद्य पदार्थ, धन, कुटुंब आदि का संबंध द्वितीय स्थान से है।
धन अथवा अन्य आवश्यकता की वस्तुएं बिना श्रम के प्राप्त नहीं हो सकतीं और बिना परिश्रम के धन टिक नहीं सकता। धन, वस्तुएं आदि रखने के लिए बल आदि की आवश्यकता होती है इसीलिए तृतीय स्थान का संबंध, बल, परिश्रम व बाहु से होता है।
शरीर, परिश्रम, धन आदि तभी सार्थक होंगे जब काम करने की भावना होगी, रूचि होगी अन्यथा सब व्यर्थ है।
अत: कामनाओं, भावनाओं का स्थान चतुर्थ रखा गया है। चतुर्थ स्थान मन का विकास स्थान है।
अत: कामनाओं, भावनाओं का स्थान चतुर्थ रखा गया है। चतुर्थ स्थान मन का विकास स्थान है।
मनुष्य के पास शरीर, धन, परिश्रम, शक्ति, इच्छा सभी हों, किंतु कार्य करने की तकनीकी जानकारी का अभाव हो अर्थात् विचार शक्ति का अभाव हो अथवा कर्म विधि का ज्ञान न हो तो जीवनचर्या आगे चलना मुश्किल है। पंचम भाव को विचार शक्ति के मन के अन्ततर जगह दिया जाना विकास क्रम के अनुसार ही है।
यदि मनुष्य अड़चनों, विरोधी शक्तियों, मुश्किलों आदि से लड़ न पाए तो जीवन निखरता नहीं है। अत: षष्ठ भाव शत्रु, विरोध, कठिनाइयों आदि के लिए मान्य है।
मनुष्य में यदि दूसरों से मिलकर चलने की शक्ति न हो और वीर्य शक्ति न हो तो वह जीवन में असफल समझा जाएगा। अत: मिलकर चलने की आदत व सफल वैवाहिक जीवन आवश्यक है और उसके लिए भागीदार, जीवनसाथी की आवश्यकता होती ही है। अत: जीवनसाथी, भागीदार आदि का विचार सप्तम भाव से किया जाता है।
यदि मनुष्य अपने साथ आयु लेकर न आए तो उसका रंग, रूप, स्वास्थ्य, गुण, व्यापार आदि कोशिशें सब बेकार अर्थात् व्यर्थ हो जाएंगी। अत: अष्टम भाव को आयु भाव माना गया है। आयु का विचार अष्टम से करना चाहिए।
नवम स्थान को धर्म व भाग्य स्थान माना है। धर्म-कर्म अच्छे होने पर मनुष्य के भाग्य में उन्नति होती है और इसीलिए धर्म और भाग्य का स्थान नवम माना गया है।
दसवें स्थान अथवा भाव को कर्म का स्थान दिया गया है। अत: जैसा कर्म हमने अपने पूर्व में किया होगा उसी के अनुसार हमें फल मिलेगा। एकादश स्थान प्राप्ति स्थान है। हमने जैसे धर्म-कर्म किए होंगे उसी के अनुसार हमें प्राप्ति होगी अर्थात् अर्थ लाभ होगा, क्योंकि बिना अर्थ सब व्यर्थ है आज इस अर्थ प्रधान युग में।
द्वादश भाव को मोक्ष स्थान माना गया है। अत: संसार में आने और जन्म लेने के उद्देश्य को हमारी जन्मकुण्डली क्रम से इसी तथ्य को व्यक्त करती है।
जन्मकुण्डली का फल कथन :
जिस भाव में जो राशि होती है उसी राशि के स्वामी ग्रह को उस भाव का भावेश कहते हैं। तृतीय, षष्ठ, एकादश भावों के पापी ग्रहों का रहना शुभ माना जाता है।
षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव के स्वामी जिन भावों में रहते हैं उसका वह अनिष्ट करते हैं यदि वह स्वग्रही अथवा उच्च न हो तो।
अपने स्वामी ग्रह से देखा जाने वाला भाव बलवान व शुभ होता है। अष्टम व द्वादश भाव में सभी ग्रह अनिष्ट फलप्रद होते हैं, किंतु शुक्र द्वादश स्थान में बहुत प्रसन्न रहता है क्योंकि शुक्र एक भोगात्मक ग्रह है तथा द्वादश स्थान भोग स्थान है। छठे भाव अथवा स्थान में भी शुक्र सम्पन्न रहता है, क्योंकि छठे, स्थान से द्वादश स्थान पर शुक्र की सप्तम दृष्टि पड़ती है। अत: छठे स्थान में आया शुक्र धन के लिए शुभ होता है और भोग-विलास की वस्तुएं देता है।
ग्रह अपने भाव केन्द्रीय, त्रिकोण, पंचम, चतुर्थ, दशम हो तो शुभ होता है। किंतु ग्रह का मित्र राशि में अथवा स्वग्रही अथवा उच्च होना अथवा वक्री होना अनिवार्य है। सूर्य व मंगल को दशम भाव में, बुध व बृहस्पति को लग्न में, शुक्र व चंद्रमा को चतुर्थ में और शनि को सप्तम भाव में दिग्बल की प्राप्ति होती है।
चंद्र लग्न शरीर है और लग्न प्राण, इन दोनों का सम्मिलित विचार करके ही कुण्डली का फल करना चाहिए। ग्रह अपना शुभ अथवा अशुभ फल अपनी महादशा में देते हैं। महादशा व अंतर्दशा के ग्रह मित्र होकर एक दूसरे के भावों में जिसे ग्रहों का 'राशि परिवर्तन योग' कहते हैं, होंगे तो अत्यंत शुभ फलदायक होंगे।
महादशा व अंतर्दशा के ग्रह एक दूसरे के शत्रु होंगे तो अशुभ फल की प्राप्ति होगी। किसी भी ग्रह का उच्च का होकर वक्री होना उसकी शुभता में न्यूनता लाता है। ग्रह का वक्री होकर उच्च होना अशुभता का सूचक है।
महादशा से अंतर्दशा का स्वामी ज्यादा बलवान होता है। अत: अंतर्दशा का स्वामी शुभ हुआ और महादशा के ग्रह मित्र हुआ तो अत्यंत शुभ फलों की प्राप्ति होती है। यदि महादशा का स्वामी ग्रह महादशा का शत्रु हुआ और दोनों ग्रह एक-दूसरे से तृतीय, षष्ठम अष्टम अथवा द्वादश हुए तो महाअशुभ फलों की प्राप्ति समझनी चाहिए।
निश्चित कर लें तो उन पर आधारित निम्न व्यवसाय होंगे।
(1) सूर्य- चिकित्सक (फिजिशियन), दवाइयों से संबंधी, मैनेजमेंट राजनीति, गेहूं से संबंधी आदि।
(2) चंद्रमा- जल से संबंधित कार्य, पेय पदार्थ, दूध, डेयरी प्रोडक्ट (दही, घी, मक्खन) खाद्य पदार्थ, यात्रा से संबंधित कार्य, आईसक्रीम, ऐनीमेशन।
(3) मंगल- जमीन जायदाद विक्रय, विद्युत संबंधी, तांबे से संबंधित, सिविल इंजीनियरिंग, इलैक्ट्रीकल इंजीनियरिंग, आर्कीटैक्चर, शल्यचिकित्सक मैनेजमेंट आदिस्पोर्टस, खिलाड़ी।
(4) बुध- वाणिज्य संबंधी, एकाउटेंट, कम्प्यूटर जोब, लेखन, ज्योतिष वाणीप्रधान कार्य, ऐंकरिंग, कन्सलटैंसी, वकील, टेलीफोन विभाग डाक, कोरियर, यातायात, पत्रकारिता, मीडिया, बीमा कंपनी आदि। कथा वाचक।
(5) बृहस्पति- धार्मिक व्यवसाय, कर्मकाण्ड, ज्योतिष, अध्यापन, किताबों से संबंधित कार्य, संपादन, छपाई, कागज से संबंधित कार्य, वस्त्रोंसे संबंधित, लकड़ी से संबंधित कार्य, न्यायालय संबंधित, परामर्श।
(6) शुक्र- कलात्मक कार्य, संगीत (गायन, वादन, नृत्य), अभिनय, चलचित्र संबंधी डेकोरेशन, फैशन डिजाइनिंग, पेंटिंग, स्त्रियों से संबंधित वस्तुएं, कोस्मैटिक स्त्रियों के कपड़े, विलासितापूर्ण वस्तु (गाड़ी,वाहन आदि) सजावटी वस्तुएं मिठाई संबंधी, एनीमेशन।
(7) शनि- मशीनों से संबंधित, पुर्जों से संबंधित, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, केमिकल प्रोडक्ट, ज्वलनशील तेल (पैट्रोल, डीजल आदि) लोहे से संबंधित कच्ची धातु, कोयला, प्राचीन वस्तुएं, पुरातत्व विभाग, अधिक श्रम वाला कार्य।
(8) राहू- आकस्मिक लाभ वाले कार्य, मशीनों से संबंधित, तामसिक पदार्थ, जासूसी गुप्त कार्य आदि विषय संबंधी, कीट नाशक, एण्टी बायोटिक दवाईयां।
(9) केतु- समाज सेवा से जुड़े कार्य, धर्म, आध्यात्मिक कार्य आदि। उपरोक्त के आधार पर जो ग्रह आजीविका को अधिक प्रभावित करे उससे संबंधित किसी क्षेत्र में जायें।
सातवा भाव "काम" का ज्योतिषीय विश्लेषण :—
उपरोक्त पद्धति द्वारा सप्तम, अर्थात काम, के भाव पर प्रस्तुत लेख है |
सप्तम भाव लग्न का सम्मुख अर्थात पूरक भाव है | अतः संसार में आना अर्थात देह का प्रकट होना लग्न है तो उसका कारण है सम्मुख में काम का भाव, और काम से मुक्ति मिले तो संसार में आने से भी मुक्ति मिलेगी | देह का काम से सीधा सम्बन्ध है, काम की पूर्ति हेतु ही जीव देह धारण करता है | लग्न का सम्बन्ध है देह और उसके गुण-अवगुण से, सांसारिक चरित्र एवं प्रकट स्वभाव से, अतः काम की पूर्ति का भी इन दैहिक लक्षणों से सम्बन्ध है | संसार में आपका प्रकट चरित्र और प्रकट स्वभाव कैसा है, इसपर काम की पूर्ति या आपूर्ति निर्भर करती है | दोनों भावों का एक दूसरे पर पूर्ण दृष्टि है |
काम (सप्तम) से दूसरा भाव है अष्टम जो मृत्यु, दैहिक जीवन में कमजोरियों अर्थात छिद्र एवं गुप्त ज्ञान का भाव है , एवं धनभाव का सम्मुख होने के कारण ऋण का भाव है | अष्टम भाव काम का धनभाव है, अत: अष्टम भाव शुभ रहे तो काम की पूर्ति की सम्भावना में वृद्धि होती है, काम हेतु जो वाक्-पटुता चाहिए वह मिलती है, काम की पूर्ति में कुटुम्ब से सहयोग मिलता है, अथवा काम के सम्बन्ध वाला नया कुटुम्ब प्राप्त होता है |
काम से तीसरा भाव है धर्म का नवम भाव | अत: धर्म भाव शुभ रहे तो काम हेतु पराक्रम की योग्यता बढ़ती है, इस कार्य में भाइयों से सहयोग मिलता है | किन्तु काम का स्वामी धर्म भाव में रहे तो धर्म को काम नष्ट करता है, जबकि कामभाव में धर्मेश रहे तो काम पर धर्म का नियन्त्रण बढ़ता है |
काम का चतुर्थ है कर्म का दशम भाव | अतः दशम शुभ रहे तो काम के क्षेत्र में आत्मीय सम्बन्ध बनता है, हार्दिक प्रेम का सम्बन्ध बनता है, जो मेलापक अच्छा होने पर दृढ़ हो जाता है | दशम शुभ हो तो दाम्पत्य जीवन में मातृपक्ष से सहयोग मिलता है और घर का सुख भी मिलता है |
एकादश भाव शुभ हो तो काम की बुद्धि तीव्र होती है क्योंकि वह काम से पञ्चम है |
द्वादश शुभ हो तो काम के मार्ग में शत्रु और रोग बाधा नहीं बनते |
लग्न शुभ हो तो काम की पूर्ति में देह और स्वभाव सहयोग करता है |
धनभाव शुभ हो तो काम की पूर्ति में मृत्यु या दुर्घटना और गम्भीर रोग आदि बाधक नहीं बनते |
तीसरा भाव शुभ हो तो काम में भाग्य साथ देता है, वह काम का भाग्यभाव है |
चौथा भाव शुभ हो तो काम की पूर्ति में जो आवश्य कर्म चाहिए वे बेखटके होने लगते हैं |
पञ्चम भाव शुभ हो तो काम हेतु जो आय चाहिए उसमें बाधा दूर होती है |
षष्ठ भाव शुभ हो तो काम के बाधक दूर होते हैं |
उपरोक्त फल केवल काम के सन्दर्भ में सभी भावों का फल है | उन भावों का लग्न के या अन्य भावों के सन्दर्भों में जो फल हैं उनका समावेश नहीं किया गया है | भावेशों के फलों का भी समावेश नहीं किया गया है |
आरूढ़ पदों और कारकांश एवं षोडश वर्ग आदि कुण्डलियों में भी यह प्रक्रिया फलों में सूक्क्षमता लाने में सहायक होगी |
उपरोक्त फल में एक विशेषता है — काम त्रिकोण में सप्तम के साथ एकादश तथा तृतीय भाव होते हैं | अतः काम की पूर्ति में समस्त बारह भावों में सर्वाधिक शुभ यही तीन भाव होने चाहिए — पराक्रम एवं आमदनी दुरुस्त रहने से ही काम की पूर्ति होती है |
सप्तम भाव को कुछ लोग धर्मपत्नी का भाव समझ लेते हैं | सप्तम भाव काम-पत्नी का भाव है, धर्म-पत्नी का भाव नवम है जहाँ से यज्ञादि धर्म के विषय देखे जाते हैं | बिना पत्नी वाले को यज्ञ का अधिकार नहीं होता | किन्तु धर्मपत्नी से भी काम का सम्बन्ध सप्तम भाव ही बताता है | इस जटिलता को आधुनिक लोग समझ नहीं पाते क्योंकि वैदिक विवाह का अर्थ लोग भूल चुके हैं , जिसमें पत्नी काम की पूर्ति का साधन नहीं बल्कि धर्म की पूर्ति का साधन है , अतः "धर्मपत्नी" कहलाती है, जिसपर समूचा गृहस्थ-धर्म टिका होता है |
अब दूसरे दृष्टिकोण से देखें | लग्न से सप्तम काम है, अतः पूर्ण दृष्टि का सम्बन्ध है | एक दुसरे के पूरक हैं |
द्वितीय भाव से षष्ठ है काम, अतः धन का शत्रु है — जो काम के पीछे दौड़ते हैं उनके धन का नाश होता है और कुटुम्ब से सम्बन्ध बिगड़ते हैं |
तृतीय भाव से पञ्चम है काम, अतः पराक्रम का अक्ल काम देता है, किस प्रकार का और कौन सा पराक्रम करें यह अक्ल काम की वासना से प्राप्त होती है |
चतुर्थ से चतुर्थ है काम, अतः काम तो घर का भी घर है, गृहस्थ आश्रम का आधार है, भूमि-भवन एवं मैत्री आदि हार्दिक सम्बन्धों को निर्धारित करने वाली नींव है |
पञ्चम से तीसरा है काम, अतः बुद्धि और सांसारिक विद्याओं का पराक्रम-भाव है काम | कामवासना न हो तो लोग सांसारिक विद्याओं के लिए पराक्रम करना छोड़ दें !
षष्ठ से दूसरा है काम, अतः कामभाव शुभ हो तो शत्रु एवं रोगों के विरुद्ध धन आदि द्वारा रक्षा करता है, कामभाव अशुभ हो तो शत्रु एवं रोग से रक्षा हेतु धन आदि साधनों का नाश होता है |
अष्टम से द्वादश है काम, अतः मोक्ष-त्रिकोण के गुप्तज्ञान का नाश काम करता है, एवं अष्टम अशुभ हो तो काम हेतु भी छिद्र या कमजोरियों में वृद्धि होती है |
नवम से एकादश है काम, अतः धर्म हेतु यह लाभ का भाव है, काम शुभ हो तो धर्म में सहायक है |
दशम से दशम है काम, अतः काम भाव शुभ हो तो कर्मशीलता बढ़ती है, पितृपक्ष से सहयोग मिलता है | काम से निराश लोग कर्म ठीक से नहीं कर पाते |
एकादश से नवम है काम, आय या लाभ का धर्म है काम, अर्थात सप्तम भाव के बली होने से लाभ में वृद्धि हेतु धार्मिक कार्य सम्पन्न होते हैं |
द्वादश से अष्टम है काम, मोक्ष की मृत्यु है काम !
कैरियर का चुनावडॉक्टर चिकित्सक बनने के योग :
1.कुंडली में यदि – दशम भाव /दशमेश पर अष्टमेश की दृष्टि/ युति प्रभाव और सूर्य शनि का दृष्टि व युति संबंध हो।
2.एकादश भाव/ एकादशेश पर सूर्य, शनि व अष्टमेश का प्रभाव हो।
3.लग्न में अष्टमेश,सूर्य व शनि की युति हो।
4.षष्ठेश का दशम, एकादश भाव या इनके भावेश को प्रभावित करना भी डॉक्टरी योग बनाता है।
5.दशम भाव में मंगल शनि की युति सर्जन बनाती है।
6.षष्ठेश का संबंध लग्न व दशम भाव से होना भी डॉक्टरी योग बनाता है।
7.मंगल, शुक्र व शनि की राशियों में चंद्र-शनि, मंगल-शनि, बुध-शनि इन दो ग्रहों की युति या सूर्य चंद्र के साथ अलग-अलग तीन ग्रहों की युति जातक को चिकित्सक बनाती है।
इंजीनियर बनने के योग :
1.कुंडली में मंगल व शनि का बलवान व शुभ होना इंजीनियर बनने हेतु अति आवश्यक है। क्योंकि शनि लोहे व तकनीकी का कारक है तथा मंगल ऊर्जा, विद्युत आदि का कारक है।
2.मंगल व शनि की राशियों का लग्न होना तथा इन दोनों ग्रहों का शुभ स्थिति में होना।
3.यदि मंगल व शनि पंचम भाव में होकर कर्मभाव/कर्मेश से संबंध स्थापित करें।
4.दशम भाव/ दशमेश पर मंगल से दृष्टि संबंध तथा सप्तम सप्तमेश से संबंध होना।
5.ज्योतिष में शनि, मंगल, राहु व केतु को तकनीकी व खोजीग्रह माना गया है। यदि इनमें से किसी का संबंध दशम भाव/दशमेश से हो जाए तो जातक इंजीनियर बन सकता है।
6.बलवान शुक्र बुध से युति कर दशम भाव/दशमेश को प्रभावित करें।
7.कुंडली में राहु का पंचम भाव/ पंचमेश से दृष्टि युति संबंध भी जातक को इंजीनियरिंग हेतु प्रेरित करता है।
वकालत के योग :
1.कानून की शिक्षा हेतु गुरु, शनि, शुक्र व बुध ग्रह अत्यधिक प्रभावी होना आवश्यक होता है। जहां गुरु व शुक्र कानून शास्त्र से संबंधित है। बुध व शनि वाणी व बहस करने हेतु जरूरी हैं। इनके बिना वकालत नहीं की जा सकती।
2.यदि दशम भाव में शनि उच्च का हो, दशम भाव पर दृष्टि डाले तो वकालत का योग बनता है।
3.गुरु उच्च/स्वक्षेत्री होकर दशम भाव/दशमेश से दृष्टि युति संबंध बनाए।
4.नवमेश दशमेश का परस्पर संबंध हो।
5.कुंडली में बुध, गुरु, शनि का उच्च व बली होना। दशमेश का नवम/षष्ठ भाव से संबंध होना।
6.तुला राशि का संबंध दशम भाव/लग्न से होना (तुला राशि को न्याय का प्रतीक माना जाता है।)
7.गुरु का बली होना तथा धनु/मीन राशि का शुभ ग्रहों से दृष्ट होना।
8.दशम भाव पर मंगल, गुरु व केतु का प्रभाव होना भी वकालत की और प्रेरित करता है।
9.तुला, धनु व मीन राशियों का लग्न या दशम भाव से संबंध भी जातक को वकालत की ओर प्रेरित करता है।
अध्यापक बनने के योग :
1.कुंडली में गुरु व बुध का शुभ, उच्च व बली होना।
लग्नेश की पंचमेश से युति होना।
2.दशम भाव में उच्च का गुरु होना।
3.तीसरे/दसवें भाव में गुरु का होना। बुधादित्य योग होना
4.सप्तमेश केंद्र में बैठकर दशमेश से दृष्ट हो तथा इन दोनों में से किसी भाव में गुरु हो। गुरु सूर्य का उच्च होना, युतिगत होना तथा एक दूसरे से सप्तम होना।
अभिनय कला के योग :
1.पंचम में शुक्र हो पंचमेश शुक्र से संबंधित हो।
पंचम शुक्र, ग्यारहवें राहु तथा लग्नेश पंचम में हो।
2.पंचम शुक्र, भाग्येश भाग्य स्थान में लग्नेश धनेश का योग हो।
लग्नेश लग्न में शुक्र मंगल व्यय भाव में हो।
3.मंगल, शुक्र, बुध का किसी प्रकार का संयोग हो। राहु चंद्र संग, शुक्र लग्नेश संग हो।
4.व्यय भाव में शुक्र चंद्र बुध से युत व दृष्ट हो।
5.छठे भाव में सूर्य, शुक्र, राहु हो तथा पंचम भाव का किसी भी प्रकार से इन ग्रहों का संबंध हो।
कैरियर का चुनाव
शिक्षा का निर्णय :
विद्या का निर्णय साधारणतः चौथे घर, उसके स्वामी और विद्या कारक बृहस्पति से होता है। पांचवा घर बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। चौथे में अशुभ ग्रह शिक्षा में रुकावट उत्पन्न करते हैं। शुभ स्थिति में बृहस्पति तथा बुध मनुष्यों तथा पदार्थों का अच्छा ज्ञान प्रदान करते हैं। बृहस्पति चौथे या दशम में उच्च कानूनी शिक्षा का द्योतक है। यदि दूसरे घर का स्वामी सुस्थित हो, तो व्यक्ति वक्ता या प्राध्यापक बनता है। केंद्र में बुध या दूसरे में शुक्र होने पर ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान होता है।
दूसरे में मंगल तथा केंद्र में बुध मनुष्य को गणितज्ञ या प्राविधिक योग्यता प्रदान करता है। सूर्य या मंगल दूसरे के स्वामी के नाते शुक्र या बृहस्पति के साथ तर्क शक्ति और मन संबंधी शास्त्रों का ज्ञान प्रदान करते हैं। बृहस्पति तथा शुक्र जब केंद्रों में हों, बुध द्वारा दृष्ट हों तो दार्शनिक अभिरुचि का निर्देशन करते हैं।
केंद्रों में शुक्र और बृहस्पति होने से उर्वर प्रतिभा का ज्ञान होता है। चतुर्थ के स्वामी और बृहस्पति तीसरे, छठे तथा ११वें के स्वामी ग्रहों के प्रभाव से मुक्त होने चाहिए। फिर शिक्षा-क्रम नहीं टूटता।
जन्म कुंडली और व्यवसाय- नौकरी
हमारे मन में ये प्रश्न अक्सर आता है की किसी कुंडली के आधार पर कैसे निर्णय करें कि जातक नौकरी करेगा या अपना व्यवसाय करेगा? यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि जातक का कार्यक्षेत्र क्या होगा?
जातक विदेश में सफलता प्राप्त करेगा या स्वदेश में।
मनुष्य जीवन कर्म पर आधारित है जीवनयापन के लिए हमें अनेक वस्तुओं तथा संसाधनों की आवश्यकता होती जिनकी प्राप्ति हमें धन के आधार पर होती है परंतु यह धन भी निरंतर रूप से किये गये किसी कर्म के द्वारा ही प्राप्त होता है यह कार्य ही हमारी आजीविका कहलाती है तथा आजीविका से ही समाज में हमारी पहचान बन पाती है।
मनुष्य जीवन कर्म पर आधारित है जीवनयापन के लिए हमें अनेक वस्तुओं तथा संसाधनों की आवश्यकता होती जिनकी प्राप्ति हमें धन के आधार पर होती है परंतु यह धन भी निरंतर रूप से किये गये किसी कर्म के द्वारा ही प्राप्त होता है यह कार्य ही हमारी आजीविका कहलाती है तथा आजीविका से ही समाज में हमारी पहचान बन पाती है।
प्रत्येक व्यक्ति की आजीविका अलग-अलग स्तर तथा भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में होती है इसके अतिरिक्त कुछ व्यक्ति सेवा नौकरी से आजीविका चलाते हैं तथा कुछ स्वतंत्र व्यवसाय करके तथा कई बार व्यक्ति मनचाहे क्षेत्र में पूर्ण परिश्रम करने पर सफल नहीं होता तथा जैसे ही वह आजीविका क्षेत्र बदलता है तो उसे सहज ही सफल मिल जाती है। वास्तव में हमारे जन्म के साथ ही ग्रह स्थिति से यह सब निश्चित हो जाता है ।
ज्योतिष से हम जान सकते हैं कि हम किस क्षेत्र में जायेंगे या क्या कार्य हमारे लिए उपयुक्त है तथा इसमें भी नौकरी या स्वयं का व्यवसाय तो ज्योतिष शास्त्र की यही उपयोगिता है कि आप अपने लिए उपयुक्त क्षेत्र चयन करें और सहज ही सफलता मिले।
नौकरी या व्यवसाय: ज्योतिषीय दृष्टि कोण में जन्मकुंडली का दशम भाव, दशमेश, शनि तथा इन पर प्रभाव डालने वाले ग्रहों से हमारी आजीविका व उसका स्वरूप स्पष्ट होता है
दशम भाव तो पूर्णतया आजीविका का कारक है ही तथा मुख्य निर्णायक घटक भी है परंतु जब आजीविका को भी नौकरी और व्यवसाय दो भागों में बांटा जाय तो इसमें नौकरी के लिए दशम के अतिरिक्त षष्ट भाव तथा व्यवसाय के लिए दशम के अतिरिक्त सप्तम भाव की भी भूमिका होती है।
जातक नौकरी करेगा या व्यवसाय: यह विषय दो दृष्टिकोण से देखा जा सकता है एक तो यह कि जातक किस प्रकार से आजीविका अपनायेगा या नौकरी और व्यवसाय में से किसमें उसकी रुचि होगी और दूसरी तरफ यह भी महत्वपूर्ण है कि वास्तव में जातक के लिए उपयुक्त क्या है नौकरी या व्यवसाय?
यदि जातक की कुंडली के दशम भाव में चर राशि (1, 4, 7, 10) स्थित है तो ऐसा जातक कर्म से स्वतंत्र सोच रखने वाला अधिक महत्वाकांक्षी व्यक्तिहोता है तथा ऐसा व्यक्ति स्वतंत्र व्यवसाय को अपनाता है।
यदि कुंडली के दशम भाव में स्थिर राशि (2, 5, 8, 11) स्थित हो तो व्यक्ति एक स्थान पर जमकर कार्य करने में रुचि रखता है तथा नौकरी को अपनाता है।
यदि कुंडली के दशम भाव में द्विस्वभाव राशि में (3, 6, 9, 12) स्थित हो तो जातक समय के अनुकूल अपने आप को ढालने वाला होता है तथा अपने लाभ के अनुसार नौकरी और व्यवसाय दोनों को अपना सकता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त इन्हीं राशियों में दशमेश की स्थिति मुख्य तो नहीं पर सहायक भूमिका अवश्य निभायेगी दशमेश चर राशि में होने पर व्यवसाय,
स्थिर राशि में होने पर नौकरी तथा द्विस्वभाव राशि में होने पर दोनों कार्यों की क्षमता व्यक्ति में होगी।
स्थिर राशि में होने पर नौकरी तथा द्विस्वभाव राशि में होने पर दोनों कार्यों की क्षमता व्यक्ति में होगी।
उपरोक्त नियम नौकरी और व्यवसाय के चयन में अपनी भूमिका निभाते हैं परंतु आजीविका के स्वरूप के अतिरिक्त ज्योतिष शास्त्र हमें यह भी अधिक सटीकता से बताता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है।
यदि कुंडली में सप्तम भाव, सप्तमेश, एकादश भाव एकादशेश व बुध अच्छी स्थिति में हो तो ही व्यक्ति व्यवसाय में अच्छी सफलता पायेगा तथा यदि षष्ट भाव व षष्टेश अच्छी स्थिति में हो तो नौकरी में सफलता होगी ।
षष्ट भाव में पाप योग हो या षष्टेश अत्यंत पीड़ित हो तो व्यक्ति को नौकरी में बहुत समस्याएं होती हैं।
जातक का कार्यक्षेत्र:
यह विषय सबसे महत्वपूर्ण है कि किस क्षेत्र में जातक को सफलता मिलेगी या जातक क्या करेगा वर्तमान समय में यह और भी महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि प्रतिस्पर्धा के समय में यदि यह निर्णय हो जाये कि हमारे लिए कौनसा क्षेत्र अच्छा है तो विद्यार्थी वर्ग उसी दिशा में प्रयास कर सकते हैं।
कार्यक्षेत्र के निर्धारण में दशम भाव की अहम भमिका है दशम भाव में स्थित राशि, दशम पर प्रभाव डालने वाले ग्रह दशमेश का नवांशपति आदि कार्यक्षेत्र के चयन में सहायक होते हैं।
‘‘कार्यक्षेत्र’’ के निर्धारण में दशम भाव में स्थिति राशियों की भूमिका भी होती है परंतु यह केवल एक सहायक भूमिका होतीहै मुख्य व सूक्ष्म रूप से तो ग्रहों की भूमिका ही होती है।
कार्यक्षेत्र निर्धारण:
दशम भाव में स्थित ग्रह तथा दशम भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रह से संबंधी जातक का कार्यक्षेत्र होता है। यदि यह ग्रह एक से अधिक हों तो जातक एक से अधिक व्यवसाय भी अपना सकता है तथा चयन करते समय जो ग्रह उनमें अधिक बली हो उससे संबंधित क्षेत्र में जाना चाहिए।
कुछ विद्वान दशमेश के नवांशपति को अर्थात दशमेश नवांश कुंडली में जिस ग्रह की राशि में हो उस ग्रह से संबंधित कार्यक्षेत्र बताते हैं परंतु यह बात तभी माननी चाहिए जब दशमेश का नवांशपति ग्रह अच्छी स्थिति में हो।
जो ग्रह जन्मकुंडली में सबसे अधिक बली हो उसके आधार पर भी जातक की आजीविका पूर्णतया संभव है और ऐसे ग्रह के आधार पर किये गये कार्य में निश्चित सफलता मिलती है।
जन्मकुंडली में शनि से त्रिकोण भाव में स्थित ग्रह भी आजीविका देता है। उपरोक्त नियमों के आधार पर जब कुछ ग्रह निश्चित हो जायें तो यह तो निश्चित है कि जातक इनमें संबंधित कार्यों में जा सकता है परंतु हमें कार्यक्षेत्र निर्धारण करने में निकले हुए ग्रहों के आधार पर भी इनमें जो सबसे अधिक बली ग्रह हो उसे आधार पर कार्यक्षेत्र का चयन करना चाहिए।
दशम भाव में स्थित राशि:
यदि दशम भाव में अग्नितत्व राशि (1, 5, 9) हो तो यह योग जातक को ऊर्जा, अग्नि, पराक्रम आदि के क्षेत्रों में सहायक होता है जैसे- (विद्युत संबंधी, अग्नि प्रधान कार्य, सेना, प्रबंध, शल्यचिकित्सा आदि)
यदि दशम भाव में भूमि तत्व राशि (2, 6, 10) हो तो यह योग भूमि या भूसंपदा सेसंबंधी कार्यों में सहायक होता है (भूमि विक्रय, प्रोपर्टी डीलिंग, भवन निर्माण, भूसंपदा आदि)
यदि दशम भाव में वायुतत्व राशि हो (3, 7, 11) हो तो यह योग जातक को बुद्धिपरक कार्यों में सहायक होता है (कम्प्यूटर संबंधी, एकाउंट्स, लेखन, वैज्ञानिक, लेखा-जोखा रखना आदि)
यदि दशम भाव में जल तत्व राशि (4, 8, 12) हो तो यह योग जातकको जल या पेय पदार्थ संबंधी कार्यों में सहायक होगा (जल, पेय, पदार्थ, नेवी, सिंचाई आदि) नियमों के अनुसार जब कार्यक्षेत्र निर्धारण के लिए ग्रह
विदेश में सफलता या स्वदेश में:
इस विषय को देखने के लिए द्वादश भाव को विदेश या विदेश यात्रा कारक माना जाता है परंतु इसके अतिरिक्त विदेश जाने या सफल होने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक चंद्रमा होता है अतः यह स्मरण रखना चाहिए यदि चंद्रमाकुंडली में बहुत कमजोर हो या पीड़ित हो तो विदेश जाना या वहां सफलता पाना बहुत कठिन होगा परंतु चंद्रमा शुभ होने पर वहां सफलता होगी।
चंद्रमा दशम भाव में हो या उसे देखे तो विदेश में सफलता संभव है।
चंद्रमा यदि शनि के साथ हो या शनि को देखे तो विदेश के योग बनेंगे।
चंद्रमा यदि बारहवें भाव में स्थित हो या षष्ठ में होकर बारहवें भाव को देखें तो भी विदेश के योग होंगे।
लग्न या सप्तम भाव में बली हो तो भी विदेश में सफलता संभव है।
लग्न या सप्तम भाव में बली हो तो भी विदेश में सफलता संभव है।
यदि दशमेश द्वादशेश का राशि परिवर्तन हो तो भी विदेश में सफलता संभव है या द्वादशेश का दशम भाव से कोई संबंध बनें तब भी। या कर्मेश द्वादश भाव मे स्थित हो तो मजबूत विदेश योग बनता है ।
यदि कुंडली में चंद्रमा अत्यंत पीड़ित हो तो विदेश जाने पर भी सफलता कठिन होती है अतः स्वस्थान पर ही सफलता होगी।
जातक के सरकारी नौकरी के योग:
हमारी ये मान्यता है कि अच्छे सूर्य से सरकारी नोकरी के योग बनते हैं किंतु ये आंशिक सत्य है ।
जब बलवान (उच्च, स्वगृही, लग्नेश व दशमेश) युति करके किसी भाव में स्थित हो तथा दशम भाव के कारक ग्रह सूर्य, बुध, गुरु एवं शनि की नैसर्गिक (प्राकृतिक) अवस्था का समय चल रहा हो तथा यह कारक ग्रह बली (स्वगृही) होकर किसी भाव मेंस्थित हो तो जातक सरकारी नौकरी में होता है।
यदि साथ ही पाप ग्रहों- राहु, केतु, मंगल, सूर्य एवं शनि की महादशा का समय बन रहा है तो जातक तकनीकी क्षेत्र में होता है ।
कभी सोचा है ?
पीपल की पूजा करने से क्यों मिट जाता है शनि का प्रकोप ?
जब किसी इंसान पर शनिदेव की महादशा चल रही होती है तो उसे पीपल की पूजा का उपाय जरूर बताया जाता है। कई बार मन में यह सवाल उठता है कि ब्रम्हांड के सबसे शक्तिशाली और क्रूर ग्रह शनि का क्रोध मात्र पीपल वृक्ष की पूजा करने से कैसे शान्त हो जाता है।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं शनि और पीपल से सम्बंधित वह पौराणिक कथा जिसके बारे में आपने शायद ही पहले कभी सुना हो।
पुराणों की माने तो एक बार त्रेता युग मे अकाल पड़ गया था । उसी युग मे एक कौशिक मुनि अपने बच्चो के साथ रहते थे । बच्चो का पेट न भरने के कारण मुनि अपने बच्चो को लेकर दूसरे राज्य मे रोज़ी रोटी के लिए जा रहे थे ।
रास्ते मे बच्चो का पेट न भरने के कारण मुनि ने एक बच्चे को रास्ते मे ही छोड़ दिया था । बच्चा रोते रोते रात को एक पीपल के पेड़ के नीचे सो गया था तथा पीपल के पेड़ के नीचे रहने लगा था। तथा पीपल के पेड़ के फल खा कर बड़ा होने लगा था। तथा कठिन तपस्या करने लगा था ।
एक दिन ऋषि नारद वहाँ से जा रहे थे । नारद जी को उस बच्चे पर दया आ गयी तथा नारद जी ने उस बच्चे को पूरी शिक्षा दी थी तथा विष्णु भगवान की पूजा का विधान बता दिया था।
अब बालक भगवान विष्णु की तपस्या करने लगा था । एक दिन भगवान विष्णु ने आकर बालक को दर्शन दिये तथा विष्णु भगवान ने कहा कि हे बालक मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूँ । आप कोई वरदान मांग लो।
बालक ने विष्णु भगवान से सिर्फ भक्ति और योग मांग लिया था । अब बालक उस वरदान को पाकर पीपल के पेड़ के नीचे ही बहुत बड़ा तपस्वी और योगी हो गया था।
एक दिन बालक ने नारद जी से पूछा कि हे प्रभु हमारे परिवार की यह हालत क्यो हुई है । मेरे पिता ने मुझे भूख के कारण छोड़ दिया था और आजकल वो कहा है।
नारद जी ने कहा बेटा आपका यह हाल शानिमहाराज ने किया है । देखो आकाश मे यह शनैश्चर दिखाई दे रहा है । बालक ने शनैश्चर को उग्र दृष्टि से देखा और क्रोध से उस शनैश्चर को नीचे गिरा दिया । उसके कारण शनैश्चर का पैर टूट गया । और शनि असहाय हो गया था।
शनि का यह हाल देखकर नारद जी बहुत प्रसन्न हुए । नारद जी ने सभी देवताओ को शनि का यह हाल दिखाया था । शनि का यह हाल देखकर ब्रह्मा जी भी वहाँ आ गए थे । और बालक से कहा कि मैं ब्रह्मा हूँ आपने बहुत कठिन तप किया है।
आपके परिवार की यह दुर्दशा शनि ने ही की है । आपने शनि को जीत लिया है । आपने पीपल के फल खाकर जीवंन जीया है । इसलिए आज से आपका नाम पिपलाद ऋषि के नाम जाना जाएगा।और आज से जो आपको याद करेगा उसके सात जन्म के पाप नष्ट हो जाएँगे।
तथा पीपल की पूजा करने से आज के बाद शनि कभी कष्ट नहीं देगा । ब्रह्मा जी ने पिपलाद बालक को कहा कि अब आप इस शनि को आकाश मे स्थापित कर दो । बालक ने शनि को ब्रह्माण्ड मे स्थापित कर दिया ।
तथा पिपलाद ऋषि ने शनि से यह वायदा लिया कि जो पीपल के वृक्ष की पूजा करेगा उसको आप कभी कष्ट नहीं दोगे । शनैश्चर ने ब्रह्मा जी के सामने यह वायदा ऋषि पिपलाद को दिया था।
उस दिन से यह परंपरा है जो ऋषि पिपलाद को याद करके शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करता है उसको शनि की साढ़े साती , शनि की ढैया और शनि महादशा कष्ट कारी नहीं होती है ।
शनि की पूजा और व्रत एक वर्ष तक लगातार करनी चाहिए । शनि कों तिल और सरसो का तेल बहुत पसंद है इसलिए तेल का दान भी शनिवार को करना चाहिए । पूजा करने से तो दुष्ट मनुष्य भी प्रसन्न हो जाता है।
तो फिर शनि क्यो नहीं प्रसन्न होगा ? इसलिए शनि की पूजा का विधान तो भगवान ब्रह्मा ने दिया है ।
ऐसे लोगों को मिलती है सरकारी नौकरी….
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य तथा चंद्र को राजा या प्रशासन से सम्बंध रखने वाले ग्रह के रूप में जाना जाता है। सूर्य या चंद्र का लग्न, धन, चतुर्थ तथा कर्म से सम्बंध या इनके मालिक के साथ सम्बंध सरकारी नौकरी की स्थिति दर्शाता है। सूर्य का प्रभाव चंद्र की अपेक्षा अधिक होता है। जन्म कुंडली में सूर्य तथा चंद्र की विभिन्न स्थिति इस प्रकार फलदायी होती है-
1- लग्न पर बैठे किसी ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक प्रभाव रखने वाला माना जाता है। लग्न पर यदि सूर्य या चंद्र स्थित हो तो व्यक्ति शाषण से जुडता है और अत्यधिक नाम कमाने वाला होता है।
2- चंद्र का दशम भाव पर दृष्टी या दशमेश के साथ युति सरकारी क्षेत्र में सफलता दर्शाता है। यधपि चंद्र चंचल तथा अस्थिर ग्रह है जिस कारण जातक को नौकरी मिलने में थोडी परेशानी आती है। ऐसे जातक नौकरी मिलने के बाद स्थान परिवर्तन या बदलाव के दौर से बार बार गुजरते है।
3- सूर्य धन स्थान पर स्थित हो तथा दशमेश को देखे तो व्यक्ति को सरकारी क्षेत्र में नौकरी मिलने के योग बनते है। ऐसे जातक खुफिया ऐजेंसी या गुप चुप तरीके से कार्य करने वाले होते है।
4-सूर्य तथा चंद्र की स्थिति दशमांश कुंडली के लग्न या दशम स्थान पर होने से व्यक्ति राज कार्यो में व्यस्त रहता है ऐसे जातको को बडा औहदा प्राप्त होता है।
5- यदि ग्रह अत्यधिक बली हो तब भी वें अपने क्षेत्र से सम्बन्धित सरकारी नौकरी दे सकते है। मंगल सैनिक, या उच्च अधिकारी, बुध बैंक या इंश्योरेंस, गुरु- शिक्षा सम्बंधी, शुक्र फाइनेंश सम्बंधी तो शनि अनेक विभागो में जोडने वाला प्रभाव रखता है।
6-सूर्य चंद्र का चतुर्थ प्रभाव जातक को सरकारी क्षेत्र में नौकरी प्रदान करता है। इस स्थान पर बैठे ग्रह सप्तम दृष्टि से कर्म स्थान को देखते है।
7- सूर्य यदि दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को सरकारी कार्यो से अवश्य लाभ मिलता है। दशम स्थान कार्य का स्थान हैं। इस स्थान पर सूर्य का स्थित होना व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रो में अवश्य लेकर जाता है। सूर्य दशम स्थान का कारक होता है जिस कारण इस भाव के फल मिलने के प्रबल संकेत मिलते है।
कब होगा विवाह ?
प्रश्न: कैसे जानें विवाह कब होगा एवं वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा?
सुखी वैवाहिक जीवन एवं संबंध विच्छेद होने वाले ज्योतिशीय योग कौन-कौन से हैं?
वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने हेतु क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं ?
लग्न चक्र के आधार पर किसी का विवाह कब होगा, यह जानने के लिए भारतीय ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, सप्तम और नवम भावों का विचार किया जाता है। मतांतर से इन भावों के अतिरिक्त चतुर्थ, पंचम और द्वादश भावों का विचार भी किया जाता है।
सप्तम भाव इन सब में प्रधान माना गया है। सप्तम भाव, उसमें स्थित ग्रह, सप्तम भाव पर पड़ने वाली शुभाशुभ ग्रहों की दृष्टि आदि का विचार विवाह काल जानने के लिए किया जाता है। विवाह के समय का आकलन करने के लिए विंशोत्तरी दशा, गोचर, गणितीय पद्धति आदि का विचार किया जाता है। विंशोत्तरी दशा के आधार पर: सप्तमेश की या सप्तम स्थान में विराजमान ग्रह की अथवा सप्तम भाव पर दृष्टि रखने वाले ग्रह या ग्रहों की दशा भुक्ति काल में विवाह होने की आशा रहती है। चंद्र, गुरु अथवा शुक्र की दशाओं में भी विवाह हो सकता है। सप्तमेश जिस राशि में बैठा हो उसके स्वामी ग्रह की दशा में विवाह हो सकता है। द्वितीयेश की दशा में अथवा द्वितीयेश जिस राशि में स्थित हो उसके स्वामी की दशा में विवाह होता है। सप्तमेश राहु या केतु से युत हो तो इनकी दशा भुक्ति में विवाह होता है। नवमेश और दशमेश की दशा में विवाह होता है।
विवाह का समय गोचर के आधार पर: विवाह के समय का अनुमान लगाने के लिए अर्थात् विवाह काल जानने के लिए विवाह की आयु होने पर उस समय की गोचर ग्रहों की स्थिति के आधार पर लग्नेश, सप्तमेश, बृहस्पति और शुक्र का विचार किया जाता है। जब गुरु गोचरवश सप्तम भाव वाली राशि अथवा उस राशि से पांचवीं या नौवीं राशि अथवा जन्मकालिक शुक्र जिस राशि में स्थित हो उस राशि में भ्रमण कर रहा हो, तब विवाह होता है।
विवाह योग्य आयु होने पर उस समय गोचरस्थ शनि और गुरु जन्म लग्न और लग्नेश, सप्तम भाव और सप्तमेश को निम्न स्थितियों में से किसी एक को देख रहे हों तो विवाह होता है-
सप्तम (जाया) स्थान और जन्म लग्न को। सप्तमेश और लग्नेश को। सप्तम स्थान और लग्नेश को। सप्तमेश और जन्म लग्न को। शनि का गोचर लगभग 30 मास या ढाई वर्ष एक राशि पर रहता है। शनि की ऐसी 30 मासीय प्रति राशि की गोचर अवधि में 12 या 13 माह के लगभग का समय ऐसा आता है जब शनि-गुरु पूर्वोक्त चार बिंदुओं में से किसी एक बिंदु में दर्शाए गए भाव एवं भावेश पर दृष्टि रखकर उन्हें बल प्रदान करते हैं। इस तरह स्थूल रूप में लगभग एक वर्ष या इससे भी कम अवधि में विवाह होने की संभावना रहती है। गुरु का गोचर काल तेरह मास का होता है जो मध्य के दो महीनों में अपना शुभाशुभ फल प्रदान करने में समर्थ होता है।
*राहु की चालबाजी जो हर जातक को कभी न कभी भोगना ही पढती हे क्योंकि ये एक करामति और छल से भरा हुआ है|*
*🦉01. राहु एक करामाती ग्रह है।*
*🦉02. राहू वह धमकी है जिससे "आपको" डर लगता है |*
*🦉03. जेल में बंद कैदी भी राहू है |*
➕ *राहू सफाई कर्मचारी है |*
*🦉04. स्टील के बर्तन राहू के अधिकार में आते हैं।*
*🦉05. "हाथी दान्त" की बनी सभी वस्तुए राहू रूप हैं |*
*🦉06. राहू "वह मित्र है जो पीठ पीछे आपकी निंदा करता है।"*
*🦉07. "दत्तक पुत्र" भी राहू की देन होता है |*
*🦉08. "नशे की वस्तुएं" राहू हैं |*
*🦉09. दर्द का टीका राहू है |*
*🦉10. राहू मन का "वह क्रोध है जो कई साल के बाद भी शांत नहीं हुआ है, न लिया हुआ बदला भी राहू है |"*
*🦉11.
शेयर मार्केट की गिरावट राहू है, उछाल केतु है ‼*
*12. बहुत समय से ताला लगा हुआ "बंध मकान" राहू है |*
*🦉13."बदनाम वकील" भी राहू है |*
*🦉14."मिलावटी शराब" राहू है |*
*🦉15."राहू वह धन है जिस पर आपका कोई हक़ नहीं है" या "जिसे अभी तक लौटाया नहीं गया है |" ना लौटाया गया "उधार" भी राहू है।*
*🦉16. "उधार ली गयी सभी वस्तुएं "खराब-राहू" करती हैं।*
*🦉17. यदि आपकी कुंडली में राहू अच्छा नहीं है तो किसी से "कोई चीज़ मुफ्त में न लें", क्योंकि "हर मुफ्त की चीज़ पर राहू का अधिकार होता है |"*
*🦉18. राहू ग्रह का कुछ पता नहीं कि कब बदल जाए जैसे कि आप कल कुछ काम करने वाले हैं लेकिन समय आने पर आपका मन बदल जाए और आप कुछ़ और करने लगें तो इस दुविधा में ...राहू का हाथ होता है |* *किसी भी प्रकार की "अप्रत्याशित घटना" का दावेदार राहू ही होता है |* *🦉आप खुद नहीं जानते की आप आने वाले कुछ घंटों में क्या करने वाले हैं या कहाँ जाने वाले हैं तो इसमें निस्संदेह राहू का आपसे कुछ नाता है | या तो राहू लग्नेश के साथ है या फिर लग्न में ही राहू है |*
*🦉यदि आप जानते हैं की आप झूठ की राह पर हैं परन्तु आपको लगता है की आप सही कर रहे हैं तो यह धारणा आपको देने वाला राहू ही है !*
*🦉19. किसी को धोखा देने की प्रवृत्ति राहू पैदा करता है यदि आप पकडे जाएँ तो इसमें भी आपके राहू का दोष है और यह स्थिति बार बार होगी इसलिए राहू का अनुसरण करना बंद करें क्योंकि यह जब बोलता है तो कुछ और सुनाई नहीं देता |*
*🦉20. जिस तरह "कर्ण पिशाचिनी" आपको गुप्त बातों की जानकारी देती है उसी तरह "यदि राहू आपकी कुंडली में बलवान होगा तो आपको सभी तरह की गुप्त बातें बैठे बिठाए ही पता चल जायेंगी |" यदि आपको लगता है की सब कुछ गुप्त है और आपसे कुछ छुपाया जा रहा है या आपके पीठ पीछे बोलने वाले लोग बहुत अधिक हैं तो यह भी राहू की ही करामात है |*
*🦉21. राहू "रहस्य का कारक ग्रह" है और तमाम रहस्य की परतें राहू की ही देन होती हैं | "राहू वह झूठ है जो बहुत लुभावना लगता है |" राहू झूठ का वह रूप है जो झूठ होते हुए भी सच जैसे प्रतीत होता है | राहू कम से कम... "जो सत्य तो कभी नहीं है |"*
*🦉22. "जो सम्बन्ध असत्य की डोर से बंधे होते हैं या जो सम्बन्ध दिखावे के लिए होते हैं वे राहू के ही बनावटी सत्य हैं |"*
*🦉23. राहू व्यक्ति को झूठ बोलना सिखाता है, बातें छिपाना, बात बदलना, किसी के विशवास को सफलता पूर्वक जीतने की कला राहू के अलावा कोई और ग्रह नहीं दे सकता |*
*🦉24. "राहू वह लालच है जिसमे व्यक्ति को कुछ अच्छा बुरा दिखाई नहीं देता केवल अपना स्वार्थ ही दिखाई देता है |"*
*🦉25. क्यों न हों ताकतवर राहू के लोग सफल? क्यों बुरे लोग तरक्की जल्दी कर लेते हैं ? क्यों "झूठ का बोलबाला" अधिक होता है ? और क्यों दिखावे में इतनी "जान" होती है ? क्योंकि इन सबके पीछे राहू की ताकत रहती है ।*
*🦉26. मांस मदिरा का सेवन, बुरी लत, चालाकी और क्रूरता, "अचानक आने वाला गुस्सा", पीठ पीछे की वो बुराई, जो ये काम करे ये सब राहू की विशेषताएं हैं|*
*🦉02. राहू वह धमकी है जिससे "आपको" डर लगता है |*
*🦉03. जेल में बंद कैदी भी राहू है |*
➕ *राहू सफाई कर्मचारी है |*
*🦉04. स्टील के बर्तन राहू के अधिकार में आते हैं।*
*🦉05. "हाथी दान्त" की बनी सभी वस्तुए राहू रूप हैं |*
*🦉06. राहू "वह मित्र है जो पीठ पीछे आपकी निंदा करता है।"*
*🦉07. "दत्तक पुत्र" भी राहू की देन होता है |*
*🦉08. "नशे की वस्तुएं" राहू हैं |*
*🦉09. दर्द का टीका राहू है |*
*🦉10. राहू मन का "वह क्रोध है जो कई साल के बाद भी शांत नहीं हुआ है, न लिया हुआ बदला भी राहू है |"*
*🦉11.
शेयर मार्केट की गिरावट राहू है, उछाल केतु है ‼*
*12. बहुत समय से ताला लगा हुआ "बंध मकान" राहू है |*
*🦉13."बदनाम वकील" भी राहू है |*
*🦉14."मिलावटी शराब" राहू है |*
*🦉15."राहू वह धन है जिस पर आपका कोई हक़ नहीं है" या "जिसे अभी तक लौटाया नहीं गया है |" ना लौटाया गया "उधार" भी राहू है।*
*🦉16. "उधार ली गयी सभी वस्तुएं "खराब-राहू" करती हैं।*
*🦉17. यदि आपकी कुंडली में राहू अच्छा नहीं है तो किसी से "कोई चीज़ मुफ्त में न लें", क्योंकि "हर मुफ्त की चीज़ पर राहू का अधिकार होता है |"*
*🦉18. राहू ग्रह का कुछ पता नहीं कि कब बदल जाए जैसे कि आप कल कुछ काम करने वाले हैं लेकिन समय आने पर आपका मन बदल जाए और आप कुछ़ और करने लगें तो इस दुविधा में ...राहू का हाथ होता है |* *किसी भी प्रकार की "अप्रत्याशित घटना" का दावेदार राहू ही होता है |* *🦉आप खुद नहीं जानते की आप आने वाले कुछ घंटों में क्या करने वाले हैं या कहाँ जाने वाले हैं तो इसमें निस्संदेह राहू का आपसे कुछ नाता है | या तो राहू लग्नेश के साथ है या फिर लग्न में ही राहू है |*
*🦉यदि आप जानते हैं की आप झूठ की राह पर हैं परन्तु आपको लगता है की आप सही कर रहे हैं तो यह धारणा आपको देने वाला राहू ही है !*
*🦉19. किसी को धोखा देने की प्रवृत्ति राहू पैदा करता है यदि आप पकडे जाएँ तो इसमें भी आपके राहू का दोष है और यह स्थिति बार बार होगी इसलिए राहू का अनुसरण करना बंद करें क्योंकि यह जब बोलता है तो कुछ और सुनाई नहीं देता |*
*🦉20. जिस तरह "कर्ण पिशाचिनी" आपको गुप्त बातों की जानकारी देती है उसी तरह "यदि राहू आपकी कुंडली में बलवान होगा तो आपको सभी तरह की गुप्त बातें बैठे बिठाए ही पता चल जायेंगी |" यदि आपको लगता है की सब कुछ गुप्त है और आपसे कुछ छुपाया जा रहा है या आपके पीठ पीछे बोलने वाले लोग बहुत अधिक हैं तो यह भी राहू की ही करामात है |*
*🦉21. राहू "रहस्य का कारक ग्रह" है और तमाम रहस्य की परतें राहू की ही देन होती हैं | "राहू वह झूठ है जो बहुत लुभावना लगता है |" राहू झूठ का वह रूप है जो झूठ होते हुए भी सच जैसे प्रतीत होता है | राहू कम से कम... "जो सत्य तो कभी नहीं है |"*
*🦉22. "जो सम्बन्ध असत्य की डोर से बंधे होते हैं या जो सम्बन्ध दिखावे के लिए होते हैं वे राहू के ही बनावटी सत्य हैं |"*
*🦉23. राहू व्यक्ति को झूठ बोलना सिखाता है, बातें छिपाना, बात बदलना, किसी के विशवास को सफलता पूर्वक जीतने की कला राहू के अलावा कोई और ग्रह नहीं दे सकता |*
*🦉24. "राहू वह लालच है जिसमे व्यक्ति को कुछ अच्छा बुरा दिखाई नहीं देता केवल अपना स्वार्थ ही दिखाई देता है |"*
*🦉25. क्यों न हों ताकतवर राहू के लोग सफल? क्यों बुरे लोग तरक्की जल्दी कर लेते हैं ? क्यों "झूठ का बोलबाला" अधिक होता है ? और क्यों दिखावे में इतनी "जान" होती है ? क्योंकि इन सबके पीछे राहू की ताकत रहती है ।*
*🦉26. मांस मदिरा का सेवन, बुरी लत, चालाकी और क्रूरता, "अचानक आने वाला गुस्सा", पीठ पीछे की वो बुराई, जो ये काम करे ये सब राहू की विशेषताएं हैं|*
*असलियत को सामने न आने देना ही राहू की खासियत है, राहु ग्रह कैसे खराब होता है और राहू ग्रह से होती कौन-सी बीमारीयाँ होती है .?*
वैसे कहा जाता है कि रोज *पीपल की छाया में सोने वाले को किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता लेकिन यदि *बबूल की छाया में सोते रहें तो दमा या चर्म रोग हो सकता है।* इसी तरह ... ग्रहों की छाया का हमारे जीवन में असर होता है।
----+----+----+----+----+----+----+---- कैसे होता राहु खराब ----+----+----+----+----+----+----+----
🦉:- अगर कोई व्यक्ति अपने गुरु या फिर अपने धर्म का अनादर करता है उस व्यक्ति का रहू गृह अवश्य खराब होता है .
🦉:- अगर कोई व्यक्ति शराब का रोजाना सेवन करता है, या फिर पराई स्त्री के साथ सम्बन्ध बनाने की इच्छुक रहता है तो उसका राहू गृह अवश्य ख़राब होगा.
🦉:- अगर कोई व्यक्ति "ब्याज वाले पैसों का धंधा करता है तो उस व्यक्ति का राहू ग्रह अवश्य खराब होता है".
🦉:- अगर कोई व्यक्ति चालाकी से किसी को धोखा देता है और झूठ बोलने की आदत बे-शुमार करता है तो उस व्यक्ति का राहू ग्रह खराब होता है.
🦉:- अगर कोई व्यक्ति लगातार तामसिक भोजन करता है तो उस व्यक्ति का राहू गृह अवश्य खराब होगा .
🦉:- अगर कोई व्यक्ति खाना अपने किचन या खाना के लिए बनाए हुए स्थान को छोड़कर और कंही ओर जाकर करता है, बारबार लगातार दोहराता है तो उस व्यक्ति का राहू ग्रह खराब होगा.
----+----+----+----+----+----+----+----
*राहू गृह खराब है ,आप कैसे पहचानेगे ?*
----+----+----+----+----+----+----+----
☄१ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके ससुर, साले या साली से झगडा बढ़ने लगेगा.
☄२ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू गृह खराब है तो उसके सोचने की ताकत कम हो जायेगी.
☄३ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके जीवन में शत्रु बढ़ जायेंगे और सोचने की क्षमता कम होने लगती है.
☄४ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके साथ दुर्घटना, पुलिस केस, या पत्नी के साथ लड़ाई झगडे में बढ़ोत्तरी हो जायेगी.
☄५ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो वो व्यक्ति छोटी छोटी बातों पे गुस्सा होने लगता है और लोगों के साथ सही तालमेल नहीं बिठा पाता है .
☄६ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उस वक्ती का एक तरह से दिमाग खराब होने लगता है और उस व्यक्ति के सर में फालतू में छोटी छोटी चोट लगने लगती है.
☄७ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो वह व्यक्ति अधिक मदिरापान या फिर सम्भोग की तरह भागने लगता है.
☄८ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो व्यक्ति नीच हरकते करने लगता है और जालीं, निर्दयी हो जाता है.
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*राहु ग्रह खराब होने से होने वाली बीमारी ..?*
----+----+----+----+----+----+----+----
१ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू गृह खराब है सबसे पहले उसको गैस से सम्बन्धित शिकायत बढ़ने लगती है.
२ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू गृह खराब है तो उसके बाल झड़ने लगते हैं तथा बवासीर से सम्बन्धित भी समस्या होने लगती है.
३ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू गृह खराब है तो वो जातक पागलों की तरह व्यवहार करेगा और लगातार मानसिक तनाव में रह्गेया.
४ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू गृह खराब है तो उसके नाखून अपने आप ही टूटने लगते है और व्यक्ति के सर में पीड़ा या दर्द बनी रहती है.
५ :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू गृह खराब है तो उस व्यक्ति को अचानक पता चलेगा की मुझे कोई बीमारी है और उस पर पैसा भी खूब खर्चा होगा तथा व्यक्ति की म्रत्यु भी हो सकती है।।
अंक आणि करीअरजन्मांक किंवा भाग्यांक 1:
(it in marathi)
1 हा अंक नेतृत्वाशी संबधित आहे. त्यामुळे ज्या व्यवसायात किंवा जॉबमध्ये नेतृत्वगुणाची गरज असते, असे करीअर जन्मांक किंवा भाग्यांक 1 असणाऱ्याना चांगले असते. हे लोक ऑर्डर घेण्यासाठी नव्हे तर ऑर्डर देण्यासाठी, इतरांच्याकडून कामे करवून घेण्यासाठी जन्माला आलेले असतात. बॉस किंवा मालक बनणे हेच यांना जास्त अनुकूल असते. राजकीय नेतृत्व, टीम लीडरशीप, व्यवस्थापन, मोठे उद्योग यात करीअर करणे यांना जास्त चांगले. वहातूक, प्रवास यांच्याशी संबंधीत व्यवसायात यांना चांगले यश मिळू शकते. पोलीस किंवा सैन्य अधिकारी म्हणून, प्रशासकीय अधिकारी म्हणून हे यशस्वी होऊ शकतात. रिअल इस्टेट, कन्स्ट्रक्शन व्यवसाय यात यांना यश मिळते.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 2:
हा अंक कला, संभाषण चातुर्य, मध्यस्थी यांच्याशी संबधीत आहे. सल्लागार, विक्रेते, चित्रकार, डिझायनर, मध्यस्थ, शिक्षक, ट्रेनर, मार्केटिंग या प्रकारचे करीअर यांना यश देते. हे लोक चांगले आणि यशस्वी डॉक्टर्स बनू शकतात. हे लोक चांगले सहाय्यक, सचिव, सेक्रेटरी बनू शकतात.
हा अंक कला, संभाषण चातुर्य, मध्यस्थी यांच्याशी संबधीत आहे. सल्लागार, विक्रेते, चित्रकार, डिझायनर, मध्यस्थ, शिक्षक, ट्रेनर, मार्केटिंग या प्रकारचे करीअर यांना यश देते. हे लोक चांगले आणि यशस्वी डॉक्टर्स बनू शकतात. हे लोक चांगले सहाय्यक, सचिव, सेक्रेटरी बनू शकतात.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 3:
3 हा अंक व्यक्त होण्याशी संबधीत आहे. अभिनय, मनोरंजन, परफॉर्मिंग आर्ट्स लेखन, कला, पब्लिक रिलेशन्स या प्रकारचे करीअर यांना जास्त चांगले. हे लोक इतरांना चांगल्या प्रकारे मोटीव्हेट करू शकतात, त्यामुळे मोटीव्हेटर, लाईफ कोच असे करीअर यांना चांगले यश देऊ शकते.
3 हा अंक व्यक्त होण्याशी संबधीत आहे. अभिनय, मनोरंजन, परफॉर्मिंग आर्ट्स लेखन, कला, पब्लिक रिलेशन्स या प्रकारचे करीअर यांना जास्त चांगले. हे लोक इतरांना चांगल्या प्रकारे मोटीव्हेट करू शकतात, त्यामुळे मोटीव्हेटर, लाईफ कोच असे करीअर यांना चांगले यश देऊ शकते.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 4:
हा अंक तर्कनिष्ठ विचार, गणित, टेक्नॉलॉजी यांच्याशी संबधीत आहे. त्यामुळे पत्रकारिता, संशोधन, संपादन, गणिताशी संबधीत व्यवसाय, इंजिनिरिंग, आर्किटेक्चर असे करीअर यांच्यासाठी चांगले ठरते. संशोधक, डिटेक्टिव्ह, तपास अधिकारी, वकील म्हणून हे चांगले काम करू शकतात.
हा अंक तर्कनिष्ठ विचार, गणित, टेक्नॉलॉजी यांच्याशी संबधीत आहे. त्यामुळे पत्रकारिता, संशोधन, संपादन, गणिताशी संबधीत व्यवसाय, इंजिनिरिंग, आर्किटेक्चर असे करीअर यांच्यासाठी चांगले ठरते. संशोधक, डिटेक्टिव्ह, तपास अधिकारी, वकील म्हणून हे चांगले काम करू शकतात.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 5:
हा अंक मल्टिटॅलेंटेड लोकांचा अंक आहे. प्रचंड बुद्धिमत्ता, झटपट विचार करण्याची ताकत आणि भाषेवरील कमांड ही यांची वैशिष्ठ्ये आहेत. शिवाय हे लोक चांगल्या प्रकारे व्यक्त होऊ शकतात. त्यामुळे अभिनय, पब्लिक स्पीकिंग, संशोधन, कला, संगीत, निर्मिती, उद्योग-व्यवसाय, लिखाण, पत्रकारिता असे अनेक करिअर्स यांना चांगले यश देतात. संशोधक, डिटेक्टिव्ह, तपास अधिकारी म्हणून हे चांगले काम करू शकतात. वहातूक, प्रवास यांच्याशी संबंधीत व्यवसायात यांना चांगले यश मिळू शकते.
हा अंक मल्टिटॅलेंटेड लोकांचा अंक आहे. प्रचंड बुद्धिमत्ता, झटपट विचार करण्याची ताकत आणि भाषेवरील कमांड ही यांची वैशिष्ठ्ये आहेत. शिवाय हे लोक चांगल्या प्रकारे व्यक्त होऊ शकतात. त्यामुळे अभिनय, पब्लिक स्पीकिंग, संशोधन, कला, संगीत, निर्मिती, उद्योग-व्यवसाय, लिखाण, पत्रकारिता असे अनेक करिअर्स यांना चांगले यश देतात. संशोधक, डिटेक्टिव्ह, तपास अधिकारी म्हणून हे चांगले काम करू शकतात. वहातूक, प्रवास यांच्याशी संबंधीत व्यवसायात यांना चांगले यश मिळू शकते.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 6:
6 हा अंक जबाबदार आणि कुटुंबवत्सल लोकांचा अंक आहे. यांना डिझायनिंगशी संबंधीत करीअर (फॅशन डिझायनिंग, आर्किटेक्चर इत्यादि) आणि जबाबदारीच्या पदावरील नोकरी करणे चांगले असते. हे लोक मॅन्युफॅक्चरिंगमध्येही चांगले यशस्वी होऊ शकतात.
6 हा अंक जबाबदार आणि कुटुंबवत्सल लोकांचा अंक आहे. यांना डिझायनिंगशी संबंधीत करीअर (फॅशन डिझायनिंग, आर्किटेक्चर इत्यादि) आणि जबाबदारीच्या पदावरील नोकरी करणे चांगले असते. हे लोक मॅन्युफॅक्चरिंगमध्येही चांगले यशस्वी होऊ शकतात.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 7:
7 हा अंक बिझनेस, इंडस्ट्री आणि धर्म-अध्यात्म यांच्याशी संबधीत, हा अंतर्मुख लोकांचा अंक आहे. हा जन्मांक किंवा भाग्यांक असणारे लोक उद्योग-व्यवसायात, सल्लागार म्हणून तसेच लोकांना बरे करणाऱ्या व्यवसायात (हिलिंग, मेडिकल) चांगले काम करू शकतात. चांगले ट्रेनर, शिक्षक, लेखकही बनू शकतात.
7 हा अंक बिझनेस, इंडस्ट्री आणि धर्म-अध्यात्म यांच्याशी संबधीत, हा अंतर्मुख लोकांचा अंक आहे. हा जन्मांक किंवा भाग्यांक असणारे लोक उद्योग-व्यवसायात, सल्लागार म्हणून तसेच लोकांना बरे करणाऱ्या व्यवसायात (हिलिंग, मेडिकल) चांगले काम करू शकतात. चांगले ट्रेनर, शिक्षक, लेखकही बनू शकतात.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 8:
8 हा अंक मनी नंबर आहे. यांना गणित आणि टेक्नॉलॉजीशी संबधीत व्यवसाय, इंजिनिरिंग, वकिली, शिक्षणक्षेत्र, व्यवस्थापन, फंड मॅनेजमेंट यात विशेष यश मिळते. जबाबदारीच्या आणि सत्तेच्या पदावरील नोकरी चांगल्या प्रकारे करू शकतात. राजकारणात चांगले यश मिळू शकते.
8 हा अंक मनी नंबर आहे. यांना गणित आणि टेक्नॉलॉजीशी संबधीत व्यवसाय, इंजिनिरिंग, वकिली, शिक्षणक्षेत्र, व्यवस्थापन, फंड मॅनेजमेंट यात विशेष यश मिळते. जबाबदारीच्या आणि सत्तेच्या पदावरील नोकरी चांगल्या प्रकारे करू शकतात. राजकारणात चांगले यश मिळू शकते.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 9:
9 हा जन्मांक किंवा भाग्यांक असणाऱ्या व्यक्तिंना मोठे उद्योग, रिअल इस्टेट, राजकारण यात जास्त यश मिळते. पोलीस किंवा सैन्य अधिकारी म्हणून, प्रशासकीय अधिकारी म्हणून हे यशस्वी होऊ शकतात.
9 हा जन्मांक किंवा भाग्यांक असणाऱ्या व्यक्तिंना मोठे उद्योग, रिअल इस्टेट, राजकारण यात जास्त यश मिळते. पोलीस किंवा सैन्य अधिकारी म्हणून, प्रशासकीय अधिकारी म्हणून हे यशस्वी होऊ शकतात.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 11:
यांना जन्मांक/भाग्यांक 2 चे सगळे करिअर्स यश देऊन जातात, शिवाय हे महान तत्वज्ञानी, आध्यात्मिक गुरु, स्पिरिच्युअल हिलर्स बनू शकतात.
यांना जन्मांक/भाग्यांक 2 चे सगळे करिअर्स यश देऊन जातात, शिवाय हे महान तत्वज्ञानी, आध्यात्मिक गुरु, स्पिरिच्युअल हिलर्स बनू शकतात.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 13:
यांना गूढ विद्या, हिप्नॉटिझम, रेकी, स्पिरिच्युअल हिलिंग, मॅजिक या क्षेत्रात चांगले यश मिळू शकते.
यांना गूढ विद्या, हिप्नॉटिझम, रेकी, स्पिरिच्युअल हिलिंग, मॅजिक या क्षेत्रात चांगले यश मिळू शकते.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 22:
यांना जन्मांक/भाग्यांक 4 चे सर्व करिअर्स चांगली आहेत. शिवाय शिक्षणक्षेत्र, NGO, कन्स्ट्रक्शन, राजकारण यात त्यांना मोठे यश मिळू शकते.
यांना जन्मांक/भाग्यांक 4 चे सर्व करिअर्स चांगली आहेत. शिवाय शिक्षणक्षेत्र, NGO, कन्स्ट्रक्शन, राजकारण यात त्यांना मोठे यश मिळू शकते.
जन्मांक किंवा भाग्यांक 26:
यांना जन्मांक/भाग्यांक 8 आणि 13 ची सर्व करिअर्स चांगली असतात, शिवाय हे लोक महान मानवतावादी कामे यशस्वी रित्या करू शकतात
यांना जन्मांक/भाग्यांक 8 आणि 13 ची सर्व करिअर्स चांगली असतात, शिवाय हे लोक महान मानवतावादी कामे यशस्वी रित्या करू शकतात
जल राशि
जल राशि के जातक असाधारण भावनात्मक और अति संवेदनशील लोग होते हैं। वे अत्यंत सहज होने के साथ ही समुद्र के समान रहस्यमयी भी हो सकते हैं। जल राशि की स्मृति तीक्ष्ण होती है और वे गहन वार्तालाप और अंतरंगता से प्यार करते है। वे खुले तौर पर अपनी आलोचना करते हैं और अपने प्रियजनों का समर्थन करने के लिए हमेशा मौजूद रहते हैं। जल राशियाँ हैं: कर्क, वृश्चिकऔर मीन।
अग्नि राशि
अग्नि राशि के जातक भावुक, गतिशील और मनमौजी प्रवृति के होते हैं। उन्हें गुस्सा जल्दी आता है, लेकिन वे सरलता से माफ भी कर देते हैं। वे विशाल ऊर्जा के साथ साहसी होते हैं। वे शारीरिक रूप से बहुत मजबूत और दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं। अग्नि राशि के जातक हमेशा कार्रवाई के लिए तैयार, बुद्धिमान, स्वयं जागरूक, रचनात्मक और आदर्शवादी होते हैं। अग्नि राशियाँ हैं: मेष, सिंह और धनु।
अग्नि राशि के जातक भावुक, गतिशील और मनमौजी प्रवृति के होते हैं। उन्हें गुस्सा जल्दी आता है, लेकिन वे सरलता से माफ भी कर देते हैं। वे विशाल ऊर्जा के साथ साहसी होते हैं। वे शारीरिक रूप से बहुत मजबूत और दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं। अग्नि राशि के जातक हमेशा कार्रवाई के लिए तैयार, बुद्धिमान, स्वयं जागरूक, रचनात्मक और आदर्शवादी होते हैं। अग्नि राशियाँ हैं: मेष, सिंह और धनु।
पृथ्वी राशि
पृथ्वी राशि के लोग ग्रह पर "धरती" से जुड़े हुए होते हैं और वे हमें व्यवहारिक बनाते हैं। वे ज्यादातर रूढ़िवादी और यथार्थवादी होते हैं, लेकिन साथ ही वे बहुत भावुक भी हो सकते हैं। उन्हें विलासिता और भौतिक वस्तुओं से प्यार होता है। वे व्यावहारिक, वफादार और स्थिर होते हैं और वे कठिन समय में अपने लोगों का पूरा साथ देते हैं। पृथ्वी राशियाँ हैं: वृष, कन्या औरमकर।
वायु राशि
वायु राशि के लोग अन्य लोगों के साथ संवाद करने और संबंध बनाने वाले होते हैं। वे मित्रवत्, बौद्धिक, मिलनसार, विचारक, और विश्लेषणात्मक लोग हैं। वे दार्शनिक विचार विमर्श, सामाजिक समारोह और अच्छी पुस्तकें पसंद करते हैं। सलाह देने में उन्हें आनंद आता है, लेकिन वे बहुत सतही भी हो सकती है। वायु राशियाँ हैं: मिथुन, तुला और कुंभ।
ज्योतिष में कोई भी असंगत राशि नहीं होती जिसका अर्थ है कि कोई भी दो राशि अधिक या कम संगत होती हैं। जिन दो लोगों की राशियों में अत्यधिक संगतता होती है, वे सरलता से निर्वाह करेंगे क्योंकि उनकी प्रवृति एक समान है। परंतु, ऐसे लोग जिनकी राशियों में संगतता कम होती हैं, उन्हें एक खुश और सौहार्दपूर्ण संबंध हासिल करने के क्रम में अधिक धैर्यवान एवं विनम्र बने रहने की आवश्यकता होगी।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, राशियाँ चार तत्वों से संबंधित हैं:
अग्नि: मेष, सिंह, धनुपृथ्वी: वृष, कन्या, मकरवायु: मिथुन, तुला, कुंभजल: कर्क, वृश्चिक, मीन,
राशियाँ जिनके तत्व एक समान हैं, स्वाभाविक रूप से उनमें संगतता होती है क्योंकि वे एक दूसरे को सबसे बेहतर समझते हैं। ज्योतिष की एक शाखा काम ज्योतिष है जहाँ राशियों के बीच प्रेम संबंध की गुणवत्ता जानने के लिए दो जातक कुंडलियों में तुलना करते हैं। काम ज्योतिष या एक लग्न राशिफल उन जातकों के लिए एक उपयोगी उपकरण हो सकता है, जो अपने रिश्ते में शक्तियों और कमजोरियों का पता लगाना चाहते हैं। राशियों की तुलना करना जीवनसाथी को बेहतर समझ पाने में भी मदद कर सकता है, जिसका परिणाम एक बेहतर संबंध के रूप में होगा।
कुण्डली के अशुभ योगों की शान्ति
1).चांडाल योग=गुरु के साथ राहु या केतु हो तो जातकको चांडाल दोष है
2).सूर्य ग्रहण योग=सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो
3). चंद्र ग्रहण योग=चंद्र के साथ राहु या केतु हो तो
4).श्रापित योग -शनि के साथ राहु हो तो दरिद्री योग होता है
5).पितृदोष- यदि जातक को 2,5,9 भाव में राहु केतु या शनि है तो जातक पितृदोष से पीड़ित है.
6).नागदोष - यदि जातक को 5 भाव में राहु बिराजमान है तो जातक पितृदोष के साथ साथ नागदोष भी है.
7).ज्वलन योग- सूर्य के साथ मंगल की युति हो तो जातक ज्वलन योग(अंगारक योग) से पीड़ित होता है
8).अंगारक योग- मंगल के साथ राहु या केतु बिराजमान हो तो जातक अंगारक योग से पीड़ित होता है.
9).सूर्य के साथ चंद्र हो तो जातक अमावस्या का जना है
10).शनि के साथ बुध = प्रेत दोष.
11).शनि के साथ केतु = पिशाच योग.
12).केमद्रुम योग- चंद्र के साथ कोई ग्रह ना हो एवम् आगे पीछे के भाव में भी कोई ग्रह न हो तथा किसी भी ग्रह की दृष्टि चंद्र पर ना हो तब वह जातक केमद्रुम योग से पीड़ित होता है तथा जीवन में बोहोत ज्यादा परिश्रम अकेले ही करना पड़ता है.
13).शनि + चंद्र=विषयोग शान्ति करें
14).एक नक्षत्र जनन शान्ति -घर के किसी दो व्यक्तियों का एक ही नक्षत्र हो तो उसकी शान्ति करें.
15).त्रिक प्रसव शान्ति- तीन लड़की के बाद लड़का या तीन लड़कों के बाद लड़की का जनम हो तो वह जातक सभी पर भारी होता है
16).कुम्भ विवाह= लड़की के विवाह में अड़चन या वैधव्य योग दूर करने हेतु.
17).अर्क विवाह = लड़के के विवाह में अड़चन या वैधव्य योग दूर करने हेतु.
18).अमावस जन्म- अमावस के जनम के सिवा कृष्ण चतुर्दशी या प्रतिपदा युक्त अमावस्या जन्म हो तो भी शान्ति करें
19).यमल जनन शान्ति=जुड़वा बच्चों की शान्ति करें.
20).पंचांग के 27 योगों में से 9
"अशुभ योग"
1.विष्कुंभ योग.
2.अतिगंड योग.
3.शुल योग.
4.गंड योग.
5.व्याघात योग.
6.वज्र योग.
7.व्यतीपात योग.
8.परिघ योग.
9.वैधृती योग.
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2.अतिगंड योग.
3.शुल योग.
4.गंड योग.
5.व्याघात योग.
6.वज्र योग.
7.व्यतीपात योग.
8.परिघ योग.
9.वैधृती योग.
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21).पंचांग के 11 करणों में से 5
"अशुभ करण"
"अशुभ करण"
1.विष्टी करण.
2.किंस्तुघ्न करण.
3.नाग करण.
4.चतुष्पाद करण.
5.शकुनी करण.
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2.किंस्तुघ्न करण.
3.नाग करण.
4.चतुष्पाद करण.
5.शकुनी करण.
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जानिये नक्षत्र जिनकी शान्ति करना जरुरी है
1).अश्विनी का- पहला चरण.(1).अशुभ है.
2).भरणी का - तिसरा चरण.(3).अशुभ है.
3).कृतीका का - तीसरा चरण.(3).अशुभ है.
4).रोहीणी का - पहला,दूसरा और तीसरा चरण.(1,2,3).अशुभ है.
5).आर्द्रा का - चौथा चरण.(4).अशुभ है.
6).पुष्य नक्षत्र का - दूसरा और तीसरा चरण.(2,3).अशुभ है.
7).आश्लेषा के-चारों चरण(1,2,3,4).अशुभ है
8).मघा का- पहला और तीसरा
चरण.(1,3).अशुभ है.
चरण.(1,3).अशुभ है.
9).पूर्वाफाल्गुनी का-चौथा चरण(4).अशुभ है
10).उत्तराफाल्गुनी का- पहला और चौथा चरण.(1,4).अशुभ है
11).हस्त का- तीसरा चरण.(3).अशुभ है.
12).चित्रा के-चारों चरण.(1,2,3,4).अशुभ है
13).विशाखा के -चारों चरण.(1,2,3,4).अशुभ है.
14).ज्येष्ठा के -चारों चरण(1,2,3,4)अशुभ है
15).मूल के -चारों चरण.(1,2,3,4).अशुभ है.
16).पूर्वषाढा का- तीसरा चरण.(3).अशुभ है.
17).पूर्वभाद्रपदा का-चौथा चरण(4)अशुभ है
18).रेवती का - चौथा चरण.(4).अशुभ है.
यह शांतीवीधान हर 3 वर्ष बाद जरुर करालेना चाहीए
क्योंकि ग्रह नक्षत्र योगका दोष हमे पीछले जन्मोके श्रापके कारण लगता है और श्रापमेसे कभीभी मुक्ती नही मीलती बलकी श्रापके खराब असरको बहोत हद तक तीन सालके लीये कम कीया जाता है
क्योंकि ग्रह नक्षत्र योगका दोष हमे पीछले जन्मोके श्रापके कारण लगता है और श्रापमेसे कभीभी मुक्ती नही मीलती बलकी श्रापके खराब असरको बहोत हद तक तीन सालके लीये कम कीया जाता है
दुष्कर्मके कारण लगा श्रापतो भुगतना पडता है परंतु ब्राह्मण वीधी द्वारा श्रापकी मात्रा कम कर सकता है वो भी कुछ वर्ष तक ही.